Art, asked by ksingh29ks, 5 hours ago

वर्तमान समय में पत्रकारिता के बदलते स्वरूप को स्पष्ट करते हुए विविध आयामों का उल्लेख कीजिए।​

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Answered by rsharma03037600
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पत्रकारिता के इस बदलते स्वरूप का जिम्मेदार केवल पत्रकार का स्वभाव और उसकी जरूरतें ही नहीं है वरन्‌ इसका असली जिम्मेदार हमारा आज का पाठक वर्ग भी है। जो इस बदलते परिवेश के साथ इतना बदल गया है की उसने समाचार पत्र और पत्रकारों के शब्दों को एक कलमकार की भावनाओं से अलग कर दिया है। इसी का नतीजा है कि आज पत्रकार अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं लिख सकता है क्योंकि वह अपने पाठक का गुलाम होता है और उसे वही लिखना पड़ता है जो उसका पाठक चाहता है। इससे अलग अगर कोई पत्रकार अपनी जीवटता दिखाते हुए खबर से तथ्यों को उजागर करने का मन बनाता भी है तो वह खबर समाचार पत्र समूह के उसूलों और विज्ञापनों की बोली की भेंट चढ़कर डस्टबीन की शोभा बढ़ाती है। अगर इन बातों की छननी से वह खबर छन कर मूल बातों समेत बच जाती है तब कहीं जाकर वह खबर पेज पर अंकित हो पाती है। ऐसे में उक्त पत्रकार भगवान को धन्यवाद देता है कि चलों खबर छप गयी, पर इस खबर के प्रति पत्रकार की ईमानदारी और मेहनत पीछे छूट जाती है और उसकी जगह संपादक व उच्च अधिकारी की प्रतिबद्धता ले लेती है।

आज की पत्रकारिता पर बाजार और व्यवसाय का दबाव बढ़ गया है। जिस कारण लोगों को जागरूक करने की अपनी आधारशिला से ही मीडिया भटक चुकी है और पेड न्यूज का रूप भव्यता से उभर कर आया है। मीडिया में ‘पेड न्यूज’ का बढ़ता चलन देश एवं समाज के लिए ही नहीं अपितु पत्रकारिता के लिए भी घातक है। ‘पेड न्यूज’ कोई बीमारी नहीं बल्कि बीमारी का लक्षण है। इसका मूल कहीं और है। इस दिशा में सकारात्मक रुप से सोचने की आवश्यकता है। मीडिया समाज का एक प्रभावशाली अंग बन गया है लेकिन आज इस आधारस्तंभ पर पूंजीपतियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जो देश एवं समाज के लिए घातक है।

आज की मीडिया समाज को इस कदर प्रभावित कर चुकी है कि वह चाहे किसी को भी राजा और रंक की श्रेणी में खड़ी कर सकती है। लेकिन विडम्बना यह है कि इतनी शक्ति होने बाद भी मीडिया को हर ओर से आलोचना ही सुननी पड़ती है क्योंकि उसकी दिशा भ्रमित है या फिर ये कहा जाये कि वह नकारात्मकता को ही आत्मसात कर चुकी है। हाल-फिलहाल की घटनाओं पर नजर दौड़ाये तो स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री पर आरोप लगाने वालों, देश के खिलाफ जहर उगलने वालों और राष्ट्रवाद को गलत ठहराने वालों को मीडिया में ज्यादा तवज्जो दी है। यहां मीडिया के कार्य पर सवाल नहीं उठ रहा बल्कि देश की जनता को क्या जानने का हक है और मीडिया द्वारा कोई खबर दिखाये जाने पर उसका कितना प्रचार होगा यह विषय विचारणीय है। क्योंकि ज्यादातर लोगों के दिमाग में जो बातें है वह क्षणिक है और टीवी चैनल या फिर पत्र-पत्रिकाओं में तुरंत पढ़े होने के कारण होती है। बहुत कम लोग होंगे जो किसी तथ्य पर गहनता से विचार करते होंगे.. ऐसे में मीडिया के दिखाया गया झूठ या अर्द्ध-सत्य देशवासियों के मन-मस्तिष्क पर गलत छाप छोड़ता है।

कहने को तो पत्रकारिता देश का चौथा स्तम्भ है। न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका जैसे देश के महत्वपूर्ण स्तंभों पर नजर रखने का कार्य करने वाली खबरपालिका आज अपने मूलकार्य से विमुख हो चुकी है। अपने प्रारम्भ में मिशन के तहत लोगों के बीच अपनी भूमिका का निर्वाह करने वाली पत्रकारिता समय के साथ बदलते हुए प्रोफेशन के रूप में भी परिवर्तित हुई। परिवर्तन का यह दौर यहीं नहीं थमा, वर्तमान समय में पत्रकारिता का स्वरूप कमीशन के तौर पर उभरा है। ऐसे में आज की पत्रकारिता को किसी भी तरह से पूर्व के मिशन और एम्बीशन के साथ जोड़ कर देखना सही नहीं है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है और मीडिया भी उसी का पालन कर रही है। शायद वर्तमान का परिवर्तन ही यह है कि किसी विशेष मुद्दे पर अपनी राय रखने वाले पत्रकारों को राष्ट्रवाद, कम्युनिस्ट या अन्य वर्गों में विदेशी की नजर से देखा जाता है।

वर्तमान की पत्रकारिता को परिभाषित किया जाना हो तो उसे मानवीय संवेदनाओं को बेचने के अनवरत क्रम को शिद्‌दत से फैलाने का उपक्रम की संज्ञा दी जा सकती है। समाचार पत्र हो या फिर खबरिया चैनल सबमें आपस में टीआरपी की जंग छिड़ी हुई है, जिसके चलते सामाजिक सरोकारों से अलग केवल सामाजिक विषमता को फलने-फूलने का मौका मिल रहा है। शक्ति का दंभ और स्वयंभू होने के भाव ने आज मीडिया को सामाजिक प्रहरी के स्थान पर निर्णायक की भूमिका में दिखती प्रतीत होती हैं। मीडिया के इस चलन ने खबरों के प्रति पाठकों के नजरिये को बदल दिया है। अब पाठकों के बीच मीडिया सूचना देने के बजाय अपना विचार परोसने में लगी हुई है।

मूलतः पत्रकारिता की प्रक्रिया ऐसी होती है जिसमें तथ्यों को समेटने, उनका विश्लेषण करने फिर उसके बाद उसकी अनुभूति कर दूसरों के लिए अभिव्यक्त करने का काम किया जाता है।

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