वर्तमान सन्दर्भ में मानव व्यवहार एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्ध बताइए।
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सृष्टि के जीवों में मानव एक मात्र प्राणी है, जिसे यह योग्यता प्राप्त है कि वह आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी क्रिया के द्वारा पर्यावरण के भौतिक परिवेश में परिवर्तन करके सांस्कृतिक परिवेश की रचना करता रहा है। मानव इतिहास के प्रारम्भ से ही अपने चारों ओर के पर्यावरण में रुचि रखता आया है। आदिम समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपने अस्तित्व हेतु अपने पर्यावरण का समुचित ज्ञान आवश्यक होता था।
मनुष्य में अग्नि तथा अन्य यंत्रों का प्रयोग पर्यावरण को परिवर्तित करने के लिए सीखा। जांच और भूल विधि द्वारा मानव अपने पर्यावरणीय ज्ञान में वृद्धि करता रहा है। धीरे-धीरे पर्यावरण में संबंधित ज्ञान का भंडार इतना विस्तृत एवं वृहद् हो गया कि इसे विज्ञान का रूप दिया जा सकने की स्थिति आ गई और पर्यावरण अध्ययन के व्यवस्थित रूप “पर्यावरण विज्ञान” का जन्म हुआ।
विगत सौ वर्षों में मानव नें आर्थिक, भौतिक तथा सामाजिक जीवन की प्रत्येक दिशा में प्रगति के लंबे-लंबे कदम उठाए हैं। उसका इन क्षेत्रों में प्रगति का मात्र एक उद्देश्य था – इससे उसका स्वयं का हित हो। उसने इस प्रगति के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। जीवों नें चारों ओर की वस्तुएं जो उनकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करती हैं, वातावरण का निर्माण करती हैं।
यथार्थ में जीव और पर्यावरण अन्योन्याश्रित हैं। एक की दूसरे से पृथक सत्ता की कल्पना करना असंभव है। सभी जीवों का अस्तित्व चारों ओर के पर्यावरण पर निर्भर करता है। पर्यावरण जीवों को आधार ही प्रदान नहीं करता, वरन् उनकी विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए एक माध्यम का भी कार्य करता है।