Hindi, asked by omkarsinha52, 11 months ago

वर्तमान शिक्षा प्रणाली जीवन के लिए शिक्षा​

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Answered by Saswat143
3

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Waah !!!!

Badhiya likha hai bhaijaan aapne

Answered by bably66
8

शिक्षा का वास्तविक अर्थ होता है, कुछ सीखकर अपने को पूर्ण बनाना। इसी दृष्टि से शिक्षा को मानव-जीवन की आंख भी कहा जाता है। वह आंख कि जो मनुष्य को जीवन के प्रति सही दृष्टि प्रदान कर उसे इस योज्य बना देती है कि वह भला-बुरा सोचकर समस्त प्रगतिशील कार्य कर सके। उचित मानवीय जीवन जी सके। उसमें सूझ-बूझ का विकास हो, कार्यक्षमतांए बढ़ें और सोई शक्तियां जागगर उसे अपने साथ-साथ राष्ट्री के जीवन को भी प्रगति पथ पर ले जाने में समर्थ हो सकें। पर क्या आज का विद्यार्थी जिस प्रकार की शिक्षा पा रहा है, शिक्षा प्रणाली का जो रूप जारी है, वह यह सब कर पाने में समथ्र है? उत्तर निश्चय ही ‘नहीं’ है। वह इसलिए कि आज की शिक्षा-प्रणाली बनाने का तो कतई नहीं। यही कारण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के इतना वर्षों बाद भी, कहने को शिक्षा बहुत अधिक विस्तार हो जाने पर भी, इस देश के व्यक्ति बहुत कम प्रतिशत आमतौर पर साक्षर से अधिक कुछ नहीं हो पाए। वह अपने आपको सुशिक्षित तो क्या सामान्य स्तर का शिक्षित होने का दावा भी नहीं कर सकता। इसका कारण है, आज भी उसी घिसी-पिटी शिक्षा-प्रणाली का जारी रहना कि जो इस देश को कुंठित करने, अपने साम्राज्य चलाने के लिए कुछ मुंशी या क्लर्क पैदा करने के लिए लार्ड मैकाले ने लागू की थी। स्वतंत्रता-प्राप्ति के लगभग पचास वर्ष बीत जाने के बाद भी उसके न बदल पाने के कारण ही शिक्षा ही वास्तविकता के नाम पर यह देश मात्र साक्षरता के अंधेरे में भटक रहा है। वह भी विदेशी माध्यम से, स्वेदेशीपन के सर्वथा अभाव में।

हमारे विचार में वर्तमान शिक्षा-प्रणाली शिक्षित होने के दंभ ढोने वाले लोगों का उत्पादन करने वाली निर्जीव मशीन मात्र बनकर रह गई है। तभी तो वह उत्पादन के नाम पर प्रतिवर्ष लाखों दिशाहीन नवयुवकों को उगलकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेती है। इस शिक्षा-प्रणाली का ही तो दोष है कि बी.ए., एम.ए. करने के बाद भी सक्रियता या जीवन व्यवहारों के नाम पर व्यक्ति अपने को कोरा-बल्कि थका-हारा और पराजित तक अनुभव करने लगता है। यह प्रणाली अपने मूल रूप में कई-कई विषयों की सामान्यत जानकारी देकर शिक्षित होने का बोझ तो हम पर लाद देती है, पर वास्तिवक योज्यता और व्यावहारिकता का कोना तक भी नहीं छूने देती। परिणामस्वरूप व्यक्ति व्यक्तित्व से हीन होकर अपने लिए ही एक अबूझ पहेली और बोझ बनकर रह जाता है। ऐसे व्यक्ति से देश जाति के लिए कुछ कर पाने की आशा करना व्यर्थ है।

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