वर्तमान युग में मूल्यों का विघटन चारों तरफ दिखाई दे रहा है। भौतिकता की अंधी दौड़ में लोग बेतहाशा धनोपार्जन की ओर दौड़ रहे हैं। लोग स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके हैं कि नीति-अनीति, अच्छा-बुरा का अंतर करना छोड़कर अपने हित के कार्यों में लगे हुए हैं। अपनी स्वार्थपूर्ति में दूसरों का अथवा समाज का कितना अहित हो रहा है, इसकी चिंता किसी को नहीं है। आज अधिकांश अभिभावकों के पास इतना समय ही नहीं रह गया है कि वे अपनी संतान को सही परवरिश दे सकें। माता-पिता की इस भाग-दौड़ एवं धनोपार्जन के तौर-तरीकों का असर बच्चों पर गहरे रूप में पड़ रहा है। बच्चा अपने एकाकीपन की भरपाई करने के लिए या तो घर में बैठकर दूरदर्शन पर आने वाले विविध फूहड़ चैनलों के कार्यक्रम देखता है या दोस्तों के साथ यत्र-तत्र घूमता रहता है। ऐसी स्थिति में छात्र मानव जीवन के किन मूल्यों को सीख पाएगा, यह कहना बड़ा ही कठिन है। ऐसी दशा में जीवन-मूल्यों की रक्षा का संपूर्ण दायित्व शिक्षकों पर आ जाता है।
(i)भौतिकता की अंधी दौड़ से क्या अभिप्राय है? 1
(ii) आजकल अधिकांश अभिभावकों का समय किस प्रकार के कामों में बितता है? 1
(iii) आजकल बच्चे अपने जीवन के एकाकीपन को किस प्रकार दूर करते हैं? 1
(iv) जीवन मूल्यों की रक्षा का दायित्व किस पर आ पड़ा
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1 - भौतिकता की अंधी दौड से अभिप्राय है की लोग अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके हैं कि नीति- अनीति, अच्छा-बुरा का अंतर करना छोड़कर अपने हित के कार्य में लगे हुए है।
2 - आजकल अधिकांश अभिभावकों का समय भाग-दौड़ एवं धनोपार्जन में बितता है।
3- आजकल बच्चे अपने जीवन के एकाकीपन को घर में बैठकर दूरदर्शन पर आने वाले विविध फूहड़ चैनलों के कार्यक्रम देखते है या अपने दोस्तों के साथ यत्र-तत्र घूमते है।
4- जीवन-मूल्यों की रक्षा का संपूर्ण दायित्व शिक्षकों पर आ पड़ा है।
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