वर्तमान युग में महिलाओं का योगदान से संबंधित दोहे एकत्र करो और लिखो।
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”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्त फलाः क्रिया”॥ अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं जहां ऐसा नहीं होता वहाँ समस्त यज्ञार्थ क्रियाएं व्यर्थ होती है।
यह विचार भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ है। भारत में स्त्रियों को सदैव उच्च स्थान दिया गया है। कोई भी मंगलकार्य स्त्री की अनुपस्थिति में अपूर्ण माना गया हैं। पुरूष यज्ञ करें पत्नी का साथ होना अनिवार्य होता हैं। उदाहरणस्वरूप श्रीराम का अश्वमेध यज्ञ।
स्त्री समाज का दर्पण होती है। यदि किसी समाज की स्थिति को देखना है, तो वहां की नारी की अवस्था को देखना होगा। राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा, उसकी समृध्दि पर नहीं अपितु उस राष्ट्र के सुसंस्कृत व चरित्रवान नागरिकों से हैं और राष्ट्र को, समाज को, ये संस्कार देती है कि स्त्री जो एक माँ हैं, निर्मात्री है। मां अपने व्यवहार से बिना बोले ही बच्चे को बहुत कुछ सिखा देती है। स्त्री मार्गदर्शक हैं वह जैसा चित्र अपने परिवार के सामने रखती हैं परिवार व बच्चे उसी प्रकार बन जाते हैं स्त्री एक प्रेरक शक्ति हैं वह समाज और परिवार के लिए चैतन्य-स्वरूप हैं परंतु वही राष्ट्रीय चैतन्य आज खुद सुषुप्तावस्था में है।
हर महान व्यक्तित्व के पीछे एक स्त्री हैं आज हम सब मिल कर देश व समाज कहां जा रहा है इसकी बाते करते हैं आज के बच्चे कल देश का भविष्य बनेंगे। परंतु यह विचार करना अति आवश्यक हैं कि आज के इस परिवेश में ये नौनिहाल किस नए भविष्य को रचने की कोशिश करने में लगा हुआ हैं हम सब एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हैं क्या सच में ऐसा है? इसी पर आज के परिवेश में जो चिंतन करने की आवश्यकता है और इस सबके लिए स्त्री जो एक मां है का दायित्व अधिक बढ़ जाता है इसलिए स्त्री संस्कारित होगी, तो बच्चों में वह संस्कार स्वतः ही आ जाएंगेक्योंकि अगर वह अपने घर में एक स्वस्थ माहौल देखेंगे तो उसे अपने आचरण में उतारेंगे।
उदाहरणस्वरूप अगर हम अपने घर में प्रातः उठते ही कोई भक्ति संगीत लगाएंगे, तो देखेंगे कि वह भजन सारा दिन आप गुनगुनाते रहेंगे। शाम के समय आपका बच्चा भी बोलेगा कि मां ये सुबह आपने क्या लगा दिया मै तो सारा दिन वही भजन बोलता रहा। इसलिए माताओं को यह विचार करना होगा कि घर का वातावरण कैसा हो हमें किस तरह साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे उसकी संतान राष्ट्र के प्रति समर्पित बने यदि माता कौशल्या केवल रानी और भोग विलास में मस्त रहती तो ‘राम’ कुछ और हीं होते यह माता कौशल्या के संस्कारों का हीं प्रतिफल हैं कि वह श्रीराम बने। आज के संदर्भ में हम डॉ. अब्दुल कलाम का उदाहरण ले सकते हैं कि इतने बड़े वैज्ञानिक होते हुए भी और यहां तक कि देश के राष्ट्रपति पद पर आसिन रहते हुए भी उन्होंने हमेशा सादगी से अपना जीवन जिया और आज तक अपनी माता के संस्कारों को जीवित रखे हुए हैं।
आज ये प्रश्न हम सबको अपने आप से करना हैं कि आज के समाज में स्त्री का क्या स्थान हैं क्या हम आज की स्त्री में माता सीता का दर्शन करते हैं जो केवल जब तक जिंदा रही अपने शील की रक्षा हेतु। आज वो द्रौपदी कहां गई जिसने हमेशा अपने खुले केशों से पांडवों को यह याद दिलाया कि राज्यसभा में किस तरह उनका अपमान हुआ और उन्हें उसका बदला लेना हैं और वह खत्म हुआ महाभारत के युध्द पर।
आज नारी जीवन पर फै शन और पाश्चात्य संस्कृ ति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। समाज भी अश्लीलता का उल्लंघन करने में लगा हुआ है।ऐसा नही है कि फैशन पहले नहीं था क्या पहले जमाने में प्रेम विवाह नहीं होते थे। उस समय तो गंधर्व विवाह और यहाँ तक की स्वयंवर भी पिता तय करते थे, और कुछ स्वयं कन्याएं भी करती थी। पुरानी संस्कृति में सब तरह से शृंगार भी महिलाएं करती थी और आभूषणों और फूलों से भी सजती थी। इसके साथ-साथ यह भी सच है कि जो कुछ आज का परिवेश है उसकी कल्पना हजारों साल पहले तक नही की जा सकती थी और यहाँ तक की 20 साल पहले तक भी नही की जा सकती थी। यह सिलसिला सालों से चला आ रहा है शायद इसे हीं परिवर्तन कहते हैं इसीलिए हम सबके सामने यह चुनौती है कि केवल अश्लीलता हम पर हावी न हों और न हीं हमारी संस्कृति, व हमारे संवेदनाओं पर चोट करें।
वर्तमान में नारी चांद पर पहुंच गयी है कल्पना चावला का नाम तो कोई नहीं भूला होगा। इसके साथ-साथ नारी देश के उच्च पदों पर आसीन है और हमारे देश की राष्ट्रपति भी तो एक स्त्री हैं हमें तो केवल स्वतंत्रता के अंदर के भाव को समझना होगा, बेटी को उच्चछृंखल बनाना तो आसाान है पर साथ में यह भी ध्यान होगा कि कही यह आजादी हमारी शर्मींदगी का कारण ना बन जाए। हमें अपनी मर्यादाओं की सीमा तय करनी होगी और समझना होगा कि इनका उल्लंघन करने पर कौन से दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। हमें आधुनिक तो बनना चाहिए पर अपनी स्वदेशी पद्धति को अपनाकर। प्राच्य एवं पाश्चात्य के बीच सेतु न बनकर यह चिंतन कर रहे है कि हम स्वतंत्रता के नाम पर स्वछंदता से परिपूर्ण न हो जाए। क्योंकि स्वछंदता मानव का सत्यानाम करती है। भारत ने स्वछंदता एवं स्वतंत्रता में भेद किया है।
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”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्त फलाः क्रिया”॥ अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं जहां ऐसा नहीं होता वहाँ समस्त यज्ञार्थ क्रियाएं व्यर्थ होती है। भारत में स्त्रियों को सदैव उच्च स्थान दिया गया है। ...