वर्तनी से आपका क्या अभिप्राय है
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वर्तनी’ शब्द का अर्थ ‘पीछे-पीछे चलना’ है। लेखन-व्यवस्था में वर्तनी शब्द स्तर पर शब्द की ध्वनियों के पीछे-पीछे चलती हैं। वर्तनी शब्द विशेष के लेखन में उस शब्द की एक-एक करके आने वाली ध्वनियों में लिपि चिह्न निर्धारित करती है। इस प्रकार उच्चारित शब्द के लेखन में प्रयोग होने वाले लिपि चिहनों के व्यवस्थित रूप को वर्तनी कहते हैं। शुद्ध वर्तनी के नियम निम्नलिखित हैं।
1.जिन व्यंजनों के अंत में खड़ी पाई जाती है, उन्हें जब दूसरे व्यंजन के साथ जोड़ते हैं तो यह हटा दी जाती है; जैसे-तथ्य में ‘थ’ को ” के रूप में प्रयोग किया है।
2.स्वर रहित पंचमाक्षर जब अपने वर्ग के व्यंजन के पहले आता है तो उसे अनुस्वार (-) के रूप में लिखा जाता है; जैसे-पंकज, दंड, पंजाब, प्रारंभ।
3.जब किसी शब्द में श, ष, स में से सभी अथवा दो का एक साथ प्रयोग हो तो उनका प्रयोग वर्णमाला क्रम से होता है; जैसे-शासन, शेषनाग।
4.जब कोई पंचमाक्षर किसी अन्य पंचमाक्षर के साथ संयुक्त होता है तो पंचमाक्षर ही लिखा जाता है; जैसे-जन्म, निम्न, अन्न।
5.यदि य, व, हु के पहले पंचमाक्षर हो तो वहाँ पंचमाक्षर ही लिखा जाता है; जैसे-पुण्य, कन्हैया, अन्य।
6.जब य, र, ल, व और श, ष, स, ह से पहले ‘सम्’ उपसर्ग लगता है तो वहाँ ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार लगता है; जैसे-सम् + वाद = संवाद, सम् + सार = संसार।
7.जब किसी शब्द के अंत में ‘ई’ अथवा इसकी मात्रा ‘ी’ हो तो उस शब्द का बहुवचन बनाते समय ‘ई’ अथवा ‘ ी’ को ‘इ’ ‘f’ हो जाता है; जैसे-दवाई = दवाइयाँ, लड़की = लड़कियाँ।
8.जब किसी शब्द के अंत में ‘ऊ’ अथवा ‘ ू’ हो तो बहुवचन बनाते समय उसे ‘उ’ अथवा ‘ ु’ हो जाता है; जैसे-लट्टू = लटुओं, आलू = आलुओं।
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