वर दंतकी पंगति कुदकली अधराधर-पल्लव खोलन की।
चपला चमक घनबीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की।।
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वर दंतकी पंगति कुदकली अधराधर-पल्लव खोलन की।
चपला चमक घनबीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की।।
भावार्थ : अर्थात कुंदकली के समान श्वेत उज्जवल वर्ण वाली यानि धवल श्वेत वर्ण वाली दंतावली यानी दांतो की पंक्ति और उनके ऊपर स्थित अधर यानि होठों का खुलना और इन अधरपुटों के बीच से श्वेत दंतावली दिखाई देना ऐसा आभास देता है, जैसे कि काले-काले बादलों के बीच से रह-रह कर कोई बिजली चमकती हो।
तुलसीदास ने श्रीराम के सौंदर्य का वर्णन करते हुए ये बात कही है।
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