वरदान माँगूंगा नहीं
परतुर ३८ दिवा से पति और ससासिता और भारतविश्वास वा परिचा नि
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यह हार एक विराम है
जोचन महासंग्राम है
तिल-तिल मिर्गा पर दया को भीख मैं तूंगा नहीं,
वरदान पागा नाही।
स्मृति सुखद पहरों के लिए
अपने खडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं,
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i think ... .................
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