Hindi, asked by ankitmeel129, 9 months ago

वरदान
(प्रस्तुत कविता में कवि रवीदनाथ गकुर ने जीवन में कर्मठ बने रहने और स्वतंत्रतापूर्वक हर परिस्थिति में डटकर
निरंतर संघर्ष करते रहने का सदेश दिया है। कवि का मानना है कि विपत्तियाँ मनुष्य के बल बुधि, साहस और
कार्य-कुशलता की कसौटी है। कवि ने ईश्वर से जगत के कल्याण की कामना भी की है।
'प्रभो! विपत्तियों से रक्षा करो'
यह प्रार्थना लेकर मैं तेरे द्वार पर नहीं आया,
'विपत्तियों से भयभीत नह
होऊँ'-
यही वरदान दे।
अपने दुख से व्यथित चित्त को
सांत्वना देने को भिक्षा नहीं माँगता.
'दुखों पर विजय पाऊँ'-
यही आशीर्वाद दे-यही प्रार्थना है।
तेरी सहायता मुझे न मिल सके तो भी
यह वर दे कि-
'मैं दीनता स्वीकार करके अवशन
संसार के अनिष्ट, अनर्थ और छल-कपट ही
मेरे भाग्य में आए हैं,
तो भी मेरा अंतर इन प्रतारणाओं के प्रभाव से
किसीके
सोही
बनूं।'
क्षीण न हुआ,
'मुझे बचा ले' यह प्रार्थना लेकर
मैं तेरे दर पर नहीं आया,
केवल संकट-सागर में तैरते रहने
की शक्ति माँगता हूँ!
'मेरा भार हलका कर दे',​
answere

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Answered by Anonymous
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वरदान (प्रस्तुत कविता में कवि रवीदनाथ गकुर ने जीवन में कर्मठ बने रहने और स्वतंत्रतापूर्वक हर परिस्थिति में डटकर ... कवि का मानना है कि विपत्तियाँ मनुष्य के बल बुधि, साहस और कार्य-कुशलता की कसौटी है। कवि ने ईश्वर से जगत के कल्याण की कामना भी की है।

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