vard vyavatha ka arth paribhasha avem uske prakaro jo samjhaye
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समाजिक इकाइयों के वे कार्य जिनके द्वारा सामाजिक व्यवस्था और सन्तुलन या समाज मे संगठन बनाए रखने में जो अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करतें है उसे प्रकार्य कहा जाता है।
हमारा समाज सामाजिक सम्बन्धों से बनी एक अत्यन्त ही जटिल व्यवस्था है। इस व्यवस्था मे प्रत्येक व्यक्ति का एक निश्चित पद या स्थान होता हैं और प्रत्येक व्यक्ति से यह आशा की जाती है की वह अपने पूर्व-निश्चित स्थान पर रहते हुए पूर्व-निर्धारित कार्यो को करता रहें।
जब समाज के सदस्य अपनी स्थिति के अनुरूप समाज के सदस्यों के कार्यों का सम्पादन करते है तो समाज मे सन्तुलन देखने को मिलता हैं। सामाजिक संरचना मे प्रत्येक इकाई की एक निश्चित स्थिति होती है और उसी के अनुसार भूमिका निर्धारित होती हैं। इकाइयों के द्वारा संपादित ऐसी भूमिकाएं जिनसे संरचना मे संतुलन आता है प्रकार्य कहलाती हैं। प्रकार्य का सम्बन्ध सामाजिक संरचना से होता है। प्रकार्य के अर्थ को और अच्छी तरह से जानने के लिए हम विभिन्न विद्वानों द्धारा दी गई प्रकार्य पर परिभाषाओं को जानेंगे।
प्रकार्य की परिभाषा (prakary ki paribhasha)
हेरी एम. जानसन के अनुसार " कोई भी आंशिक संरचना उपसमूह का एक प्रारूप भूमिका सामाजिक मानदण्ड या सांस्कृतिक मूल्य का वह योगदान है जिसे वह सामाजिक व्यवस्था के एक अथवा अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देता है, उसे प्रकार्य कहा जाता हैं।
एल.ए. कोजर के अनुसार " प्रकार्य किसी सामाजिक क्रिया का परिणाम है जो किसी संरचना तथा उसके निर्माणक अंगो के अनुकूलन और सामंजस्य मे सहायक होता है।
मैलिनोवस्की के अनुसार" प्रकार्य का अभिप्राय हमेशा किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करना है, इसमें भोजन करने की सरल क्रिया से लेकर संस्कारों को सम्पन्न करने तक की सभी जटिल क्रियाएं शामिल हैं।
मर्टन के अनुसार "प्रकार्य वे अवलोकित परिणाम है जो की सामाजिक व्यवस्था के अनुकूलन या सामंजस्य को बढ़ातें है।"