Music, asked by animegirl87, 1 year ago

varsha me bhigne ka anuvhav paragraph writing ​

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Answered by Deepika2305
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HERE IS YOUR ANSWER.....

बारिश का दिन एक ऐसा दिन होता है, जो लगभग सभी को पसंद होता है, चाहे वह छोटा बच्चा हो, वयस्क या बुजुर्ग व्यक्ति हो। साल भर बारिश की बारिश का इंतजार किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बारिश के रूप में पृथ्वी पर अपना आशीर्वाद दिखाते हैं और सब कुछ और सभी को प्रसन्न करते हैं। यह बारिश और हरियाली के साथ बारिश में भीगते हुए पेड़ों और पौधों को देखने के लिए एक दृश्य है।

आसमान में बादलों ने सूरज को बरसाया और बारिश के दिन चिलचिलाती गर्मी से राहत दी। इस दिन का मौसम बेहद सुहावना होता है और ऐसा मौसम हमारी इंद्रियों पर अद्भुत काम करता है। यह हमारे दिल को एक खुशी के एहसास से भर देता है। मुझे सिर्फ बरसात के दिन बहुत पसंद हैं।

HOPE IT HELPS!!!!!


Deepika2305: hi
saran545: how are you
Deepika2305: fine.
saran545: btw cutest ur looking in dp
Deepika2305: thanks
saran545: welcome
saran545: from where you are
saran545: ????
Deepika2305: Delhi
saran545: wow nice
Answered by saran545
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जून का महीना था । सूर्य अंगारे बरसा रहा था । धरती तप रही थी । पशु-पक्षी गर्मी के मारे परेशान थे । हमारे यहाँ तो कहावत प्रचलित है कि ‘जेठ हाड़ दियाँ धुपां ): माघ दे पाले’ । जेठ अर्थात् ज्येष्ठ महीना हमारे प्रदेश में सबसे अधिक तपने वाला महीना होता है । इसका अनुमान तो हम जैसे लोग ही लगा सकते हैं । मजदूर और किसान इसे तपती गमी को झेलते हैं । पंखों, कूलरों या एयर कंडीशनरों में बैठे लोगों को इस ग की तपश का अनुमान नहीं हो सकता । ज्येष्ठ महीना बीता, आषाढ़ महीना शुरू हुआ । महीने में ही वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होती है । सब की दृष्टि आकाश की ओर उठ। है । किसान लोग तो ईश्वर से प्रार्थना के लिए अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं । सहसा ! दिन आकाश में बादल छा गये । बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर मोर अपनी मधुर आवा में बोलने लगे । हवा में भी थोड़ी शीतलता आ गई । मैं अपने कुछ साथियों के साथ व ऋतु की पहली वर्षा का स्वागत करने की तैयारी करने लगा । धीरे-धीरे हल्की-हल्की बून्दा-बान्दी शुरू हो गयी । हमारी मण्डली की खुशी का ठिकाना न रहा । मैं अपने साथियों के साथ गाँव की गलियों में निकल पड़ा । साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘कालियाँ इट्टा काले रोड़ मह बरसा दे जोरो जोर’। कुछ साथी गा रहे थे ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से’ । किसान लोग भी खुश थे । उनका कहना था—‘बरसे सावन तो पाँच के हों बीवन’ नववधुएँ भी कह उठीं ‘बरसात वर के साथ और विरहिणी स्त्रियाँ भी कह उठीं कि ‘छुट्टी लेके आजा बालमा, मेरा लाखों का सावन जाए । वर्षा तेज़ हो गयी थी । हमारी मित्र मण्डली वर्षा में भीगती गालियों से निकल खेतों की ओर चल पड़ी । खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मज़ा ही कुछ और है । हमारी मित्र मण्डली में गाँव के और बहुत से लड़के शामिल हो गये थे । वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी। मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता । सौंदर्य का ऐसा साक्षात्कार मैंने कभी न किया था। जैसे वह सौंदर्य अस्पृश्य होते हुए भी मांसल हो । मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था। मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं। वर्षा में भीगना, नहाना, नाचना, खेलना उन लोगों के भाग्य में कहां जो बड़ी-बड़ी कोठियों में एयरकंडीशनर कमरों में रहते हैं ।


animegirl87: Nice one
saran545: thanks
saran545: mark brain pls
saran545: if you wish
saran545: thank u girl
animegirl87: your welcome
animegirl87: ☺☺☺
saran545: from where you are
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