varsha ritu par nibandh 300 words
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वर्ष ऋतु हमारे लिए ढेर सारी खुशियों की बौछार लेके आती है। भारत में वर्षा ऋतु एक बेहद ही महत्वपूर्ण ऋतु है। वर्षा ऋतु आषाढ़, श्रावण तथा भादो मास में मुख्य रूप से होती है। वर्षा ऋतु मुझे बहुत पसंद है। ये भारत के चार ऋतुओं में से मेरी सबसे प्रिय ऋतु है। यह गर्मी के मौसम के बाद आती है, जो साल की सबसे गर्म ऋतु होती है। भयंकर गर्मी, गर्म हवाएँ (लू), और तमाम तरह की चमड़े की दिक्कतों की वजह से मैं गर्मी के मौसम में काफी परेशान हो जाता हूँ। हालाँकि, सभी परेशानियाँ वर्षा ऋतु के आने के साथ ही दूर हो जाती है।
वर्षा ऋतु जुलाई (सावन) के महीने में आती है और तीन महीने तक रहती है। ये हर एक के लिये शुभ मौसम होता है और सभी इसमें खुशी के साथ ढेर सारी मस्ती करते है। इस मौसम में हम सभी पके हुये आम का लुत्फ उठाते है। वर्षा ऋतु में हम भारतीय बहुत सारे त्यौहारों को पूरे उत्साह के साथ मनाते है।
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जब भूतल तवा-सा जलता है, गरम हवा के थपेड़ों से फूल, पौधे, वृक्ष तथा लताएँ झुलस जाते हैं, प्राणी निढाल हो जाते हैं, चहँओर त्राहि-त्राहि मच जाती है। तब हम आकाश की ओर मुँह उठाकर ताकते हैं और मनौती मनाते हैं कि ईश्वर! अब शीघ्र वर्षा करो।
हमारी पुकार सुनी गई। ग्रीष्म के बाद बरसात आई। मेघ ने झड़ी लगाई। जंगल में मंगल हो गया। जिधर देखो उधर ही हरियाली दिखाई पड़ने लगी। तब हम सबकी जान-में-जान आई। ईश्वर का धन्यवाद किया। छोटे-छोटे नदी-नाले आपे में नहीं समाते, सभी कल-कल के गीत सुनाते हुए बहने लगते हैं। मयूर भी मेघों का स्वागत अपनी सुरीली वाणी से और नाचकर करते हैं। मेढकों की टर्र-टर्र, झींगुरों की झंकार और जुगनुओं की चमक से रात्रि आनंदमय बन जाती है।
ऐसे ही सुहावने मौसम में तीज का त्योहार आता है। पेड़ों की डालों पर झूले पड़े होते हैं। स्त्रियाँ मल्हार से पड़े होते हैं। स्त्रियाँ मल्हार से सावन मास का स्वागत करती हैं। सभी सखी-सहेलियाँ प्रेमपूर्वक गीत गाती हैं। उनका हृदय उल्लास से भर जाता है। पावस ऋतु में पके आमों की बहार होती है। देशी आम का टपका बड़ा गुणकारी होता है। यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। इन आमों को चूसने के बाद दूध पीने से शक्ति बढ़ती है। कभी नीलगगन में इंद्रधनुष की निराली छटा बालकों का मनोरंजक खेल बन जाती है।
कृषक की बाँछे खिल जाती हैं। खेतों में हल जोता जाता है और पुरवैया हवा अपना राग अलापती है। ग्वाले पशुओं को तालाबों में छोड़कर बागों में आनंद मनाते हैं। वृक्ष-लता की हरियाली की तरह मनुष्यों का हृदय भी हरा-भरा हो जाता है। मक्का, ज्वार, बाजरे के लहलहाते खेत किसान को नवजीवन प्रदान करते हैं। इंद्रधनुष की झलक, मेघों की कड़क, बिजली की चमक कवियों के हृदयों में नईनई कल्पनाएँ जगाने लगती है।
लोकनायक तुलसी दास ने भी रामचरितमानस में पावस ऋतु का इस तरह वर्णन किया :
वर्षा काल मेघ नभ छाए।
गर्जत लागत परम सुहाए।।
दामिनि दमक रही घन माहीं ।
खल की प्रीति यथा थिर नाहीं।।
दादुर धुनि चहुँओर सुहाई।।
पढ़हिं वेद जिमि बटु समुदाई ।।
पावस ऋतु में मेढकों का टर्राना भी बड़ा प्रिय लगता है। पावस ऋतु में सुख-शांति की लहर दौड़ने पर मलेरिया आदि का प्रकोप हो जाता है। अतः ऐसे अवसर पर मानव जाति को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। अंत में यह मानना ही पड़ेगा कि यदि वसंत ऋतुओं का राजा है तो वर्षा ऋतुओं की रानी।
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