vartman parivesh Mein Gandhi ji ke Siddhant par nibandh
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महात्मा गांधी एक युग पुरूष थे। उन्होंने जहां एक ओर भारतवासियों में स्वाधीनता की भावना जागृृत की वहीं उनके सामाजिक जीवन को भी प्रवाहित किया तथा साहित्यकारों के प्रेरणा स्त्रोत भी बने। गांधी कोई दार्शनिक नहीं थे, वो एक सच्चे विचारक एवं सन्त थे, उनका सारा जीवन कर्ममय था, व्यक्तिगत साधना में उनका विश्वास था। उनके जीवन का लक्ष्य केवल अंग्रेजी सत्ता से छुटकारा दिलाना नहीं था, भारत और सारे विश्व का सत्य और अहिंसा के आदर्शों पर निर्माण करना था। गांधी जी ने पहली बार सत्य, अहिंसा और शत्रु के प्रति प्रेम के आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धान्तों का राजनीति के क्षेत्र में इतने विशाल पैमाने पर प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की। गांधी ने जहां एक ओर भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाई, वहीं दूसरी ओर संसार को अहिंसा का ऐसा मार्ग दिखाया, जिस पर यकीन करना कठिन तो नहीं पर अविश्वसनीय जरूर था।
दुनिया के करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले बापू के मोहनदास कर्मचन्द से राष्ट्रपिता बनने की उनकी यात्रा बेहद दिलचस्प ही नहीं वरन अचंभित कर देने वाली भी है। उनका ईश्वर और प्रार्थना पर अटूट विश्वास था। उनकी व्यक्तिगत मान्यता थी कि प्रार्थना के द्वारा हम अपने जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयां का दृढ़तापूर्वक सामना कर सकते हैं। क्योंकि सच्ची प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। हिन्दू, मुसलमान, ईसाई सभी की उपासना पद्धति भिन्न होने के बाद भी, वह है तो उसी परम सर्वशक्तिमान में श्रद्धा। मूर्ति पूजा में भी उनका यकीन था लेकिन वह अंध्विश्वास और पाखण्ड के खिलाफ थे। ईश्वर को गांधी जी ‘सत्चित्त आनन्द’ की संज्ञा देते थे, क्योंकि उसमें स्वयं सत्य का निवास है। गांधी जी ने जीवनपर्यन्त सत्य को सर्वोपरि माना।
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