वसंत के आने से पृथ्वी पर स्वर्गिक सुंदरता कैसे आई?
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वसंत ऋतु भारत की छः ऋतुओं में से एक है . अन्य पांच ऋतुएँ हैं -- वर्षा , ग्रीष्म , शरद , शिशिर एवं हेमंत . वसंत का आगमन हेमंत ऋतु के बाद होता है . हिन्दू पंचांग के अनुसार वसंत ऋतु का आगमन हर वर्ष माघ महीने के शुक्ल पंचमी को होता है . ग्रेगेरियन केलिन्डर के अनुसार के अनुसार यह तिथि फरवरी माह के द्वितीय पक्ष या मार्च महीने के प्रथम पक्ष में पड़ती है .वसंत ऋतु में वातावरण का तापमान सामान्य रहता है . प्रकृति की सुन्दर छटा देखते ही बनती है . पेड़ों पर नए पत्तों की कपोलें फूट पड़ती हैं . ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने हरियाली और खुबसूरत फूलों से अपना श्रृंगार किया हो . फूलों और फलों की खुशबू से वातावरण मनमोहक बन जाता है . कोयल की कूक भी इस मौसम की ख़ास विशेषता है .
सरसों के पीले फूल जहाँ प्रकृति के स्वर्णमयी होने का एहसास कराते हैं वहीँ महुए व आम्रमंजरी के मादक गंध की मादकता हर तरफ छाई रहती है .इन्ही विशेषताओं के कारण वसंत को "ऋतुराज" अर्थात ऋतुओं का राजा कहा जाता है . यह ऋतु प्रकृति का पावन एवं अनोखा उपहार होता है . इस आनन्द काल में लोग वसंतोत्सव मनाते है .
ऋतुराज वसंत से कवियों एवं लेखकों का विशेष अनुराग होता है . आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक वसंत ऋतु को केंद्र में रखकर अनेक रचनाएँ लिखी गई हैं .
राष्ट्र कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' भी वसंत प्रेम से अछूते नहीं रह सके , उनकी ये पंक्तिया इसका प्रमाण हैं__
हाँ ! वसंत की सरस घड़ी है , जी करता मैं भी कुछ गाऊं ;
कवि हूँ ,आज प्रकृति-पूजन में निज कविता के दीप जलाऊं .
उफ़ ! वसंत या मदनबाण है ? वन-वन रूप ज्वार आया है ;
सिहर रही वसुधा रह-रहकर यौवन में उभार आया है .
कसक रही सुंदरी , 'आज मधु ऋतु मेरे कान्त कहाँ ?
दूर द्वीप में प्रतिध्वनि उठती , 'प्यारी और वसंत कहाँ ?'
वसंत के आगमन के साथ ही पृथ्वी स्वर्ग के समान हो जाती है . इसका आगमन ही त्यौहारों के साथ होता है . सरस्वती पूजन से प्रारम्भ हुआ वसंतोत्सव , शिवरात्री के उन्माद एवं होली के उत्साह के साथ अपने चरम पर होता है . होली वैसे तो वसंत के लगभग अंतिम चरण में मनाई जाती है किन्तु इसका उत्साह काफी पहले से ही लोगों में देखने को मिलने लगता है . इस तरह वसंत अपने साथ न केवल प्रकृति की सुन्दर छटा बल्कि त्यौहारों की सौगात भी लेकर आता है .