वसंत के पाठ 'टोपी' का सारांश 80-100 शब्दों में लिखिए |
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टोपी शुक्ला धर्म पर आधारित एक कहानी है जहां पर दो अलग-अलग धर्मों से जुड़े बच्चों और एक बच्चे एवं एक बुढ़ी दादी के बीच अटूट प्रेम की कथा है।
इफ़्फ़न और टोपी यह दोनों पक्के मित्र थे। यह दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे थे परन्तु दोनों की आत्मा एक दूसरे से जुड़ी हुई थी। टोपी हिंदू धर्म का था और इफ़्फ़न की दादी मुस्लिम।
परन्तु जब भी टोपी इफ़्फ़न के घर जाता था तो दादी के पास ही बैठता था। उनकी मीठी पूरबी बोली उसे बहुत अच्छी लगती थी। दादी पहले अम्मा का हाल चाल पूछतीं। दादी उसे रोज़ कुछ न कुछ खाने को देती परन्तु टोपी खाता नहीं था।
फिर भी उनका हर शब्द उसे गुड़ की डली सा लगता था। इसलिए उनका रिश्ता अटूट था। इफ़्फ़न की दादी जितना प्यार इफ़्फ़न को करती उतना ही टोपी को भी करती थी, टोपी से अपनत्व रखती थी। उनकी मृत्यु के बाद टोपी को ऐसा लगा मानो उस पर से दादी की छत्रछाया ही खत्म हो गई है। इसलिए टोपी को इफ़्फ़न की दादी की मृत्यु के बाद उसका घर खाली सा लगा।
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Explanation:
इस खूबसूरत कहानी की शुरुआत होती है एक गौरैया के जोड़े की बातचीत से। दोनों (नर व मादा गौरैया) एक दूसरे के साथी थे और दोनों में बहुत प्रेम भी था। वो दोनों जहाँ जाते , साथ जाते , साथ खाते-पीते , हँसते , रोते और खूब बातें करते। दोनों अपने सारे काम साथ-साथ करते थे और बहुत खुश रहते थे।
एक बार मादा गौरैया ने किसी मनुष्य को कपड़े पहने देखा। तो उसने नर गौरैया ने कहा कि मनुष्य वस्त्रों में कितना सुंदर लगता हैं। तब नर गौरैया ने मादा गौरैया को समझाते हुए कहा कि वस्त्र मनुष्य को सुंदर नहीं बनाते बल्कि वो तो उसका वास्तविक सौंदर्य ढक देते है।और हमें वस्त्रों की कोई आवश्यकता नहीं। हम तो ऐसे ही बहुत सुंदर दिखते हैं।
इस पर मादा गौरैया कहती है कि मनुष्य केवल अपने आप को सुन्दर दिखाने के लिए ही कपड़े नहीं पहनता बल्कि गर्मी , सर्दी , बरसात जैसे मौसमों की मार से खुद को बचाने के लिए भी मनुष्य कपड़े पहनता है।
तब नर गौरैया , मादा गौरैया को समझाते हुए कहता है कि असली टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। वैसे इस टेापी की इज्जत को बचाये रखने में कितने ही लोगों का दिवाला निकल जाता है। और मनुष्य अपनी इज्जत को बचाने या अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ना जाने कितने ही लोगों को टोपी पहनाता (बेवकूफ बनाता) है।
मगर मादा गौरैया को टोपी पहनने का शौक चढ़ गया। और उसने अपने लिए एक सुंदर सी टोपी बनाने की ठान ली और इस दिशा में उसने अपना प्रयास भी शुरू कर दिया।
अगले दिन सुबह-सुबह रोज की तरह नर गौरैया और मादा गौरैया दाना चुगने एक कूड़े के ढेर के पास गए । दाना चुगते-चुगते अचानक मादा गौरैया को रुई का एक टुकड़ा मिल गया। रुई का टुकड़ा देखकर मादा गौरैया ख़ुशी से कूड़े के ढेर पर लोटने लगी।
अब यहां से शुरू होता है छोटी सी गौरैया का उस रुई से खूबसूरत सी टोपी बनाने तक का सफर।
सबसे पहले गौरैया उस रुई को धुनिया के पास ले जाकर धुनवाने की कोशिश करती है। लेकिन धुनिया उसका काम मुफ्त में करने से मना कर देता है। लेकिन जब वह उसको , उसकी मेहनत का पूरा हिसाब यानी उस रुई में से आधी रुई देने की बात करती है तो , धुनिया खुशी खुशी उसकी रूई धुन देता है।
फिर गौरैया उस धुनी हुई रुई का सूत कतवाने के लिए कोरी के पास ले जाती है। और उसे भी आधा सूत मेहनताने के रूप में दे देती है। उसके बाद गौरैया धागे से कपड़ा बनवाने के लिए बुनकर के पास पहुंचती है। और बुनकर को भी कपड़े का आधा हिस्सा मेहनताने के रूप में दे कर धागे से कपड़ा बनवा लेती है।
उसे बाद गौरैया उस कपड़े से टोपी बनाने के लिए दर्जी के पास पहुंचती है। उसे भी उसकी मजदूरी के रूप में आधा कपड़ा दे देती हैं। दर्जी ने खुश हो कर न सिर्फ उसकी टोपी बनाई , साथ में उसमें पाँच ऊन के फूल भी लगा दिए। गौरैया की टोपी अब बहुत सुन्दर लग रही थी। अब तो नर गौरैया को भी कहना ही पड़ा कि तुम टोपी पहन कर बिल्कुल रानी लग रही हो।
उस टोपी को पहनने के बाद गौरैया के मन में राजा से मिलने की इच्छा हुई। और वह टोपी पहन कर राजा के महल में पहुँची। उस समय राजा छत पर मालिश करवा रहा था। गौरैया ने राजा का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।जिससे राजा को क्रोध आ गया। और उसने अपने सैनिकों को गौरैया को मारने का आदेश दे दिया। सैनिकों ने गौरैया को मारा तो नहीं , मगर उसकी टोपी छीन ली।
राजा ने जब उसकी सुन्दर टोपी को देखा तो वह हैरान रह गया। उसने गौरैया से पूछा कि इतनी सुन्दर टोपी किसने बनाई। गौरैया ने बताया कि टोपी दर्जी ने बनाई हैं। तब राजा ने दर्ज़ी को बुलवाया। दर्जी ने टोपी सुन्दर बनने का कारण कपड़े का अच्छा होना बताया। इस प्रकार फिर एक एक कर बुनकर , कोरी व धुनिया को राजा ने अपने दरवार में बुलाया।
सभी ने राजा को बताया कि गौरैया ने सभी को उनकी मेहनत की पूरी मजदूरी दी थी। इसलिए उन्होंने भी ईमानदारी से काम किया।
अपनी टोपी छीनती देख गौरैया जोर जोर से चिल्लाने लगती हैं कि उसने हर व्यक्ति को उसकी मेहनत की पूरी कीमत चुकायी है। राजा कंगाल है। वह प्रजा को बहुत सताता है। उनसे मनमाना कर वसूलता है। अब उसने उसकी टोपी भी छीन ली है। खुद पूरा मेहनताना देकर अच्छी टोपी नहीं बनवा सकता है।
अब राजा को लगने लगता हैं कि गौरैया कहीं उसकी सारी पोल ना खोल दे। यह सोचकर राजा ने गौरैया की टोपी वापस कर दी। गौरैया ने टोपी पहनी और उड़ते हुए जोर-जोर से “राजा डरपोक हैं। इसीलिए उसने टोपी लौटा दी” कहती हुई वहां से चली गई।