वस्त्रोापयोगी तन्तु से आप क्या समझते है
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तैयार वस्त्र की साज-सज्जा तथा प्रयोग आदि से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है, परन्तु इस बात का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को नहीं है कि वस्त्र कैसे तथा किससे-तैयार किए जाते हैं। वस्त्रों का निर्माण अनेक प्रकार के तन्तुओं से होता है। अब प्रश्न उठता है कि तन्तु किसे कहते हैं? वस्त्र-विज्ञान की भाषा में वस्त्र-निर्माण की सबसे छोटी इकाई को तन्तु या रेशा कहते हैं। तन्तुओं से धागा तैयार किया जाता है तथा धागों से वस्त्र का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार वस्त्र-निर्माण के लिए अपनाए जाने वाले विभिन्न तन्तुओं के आकार, शक्ल, गुण, लम्बाई तथा स्रोत भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रारम्भ में व्यक्ति केवल प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होने वाले तन्तुओं से ही वस्त्र तैयार करता था, परन्तु आधुनिक युग में मनुष्य ने कृत्रिम रूप से भी वस्त्रोपयोगी तन्तु तैयार कर लिए हैं।
वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का वर्गीकरण -
उपर्युक्त वर्णित तालिका के आधार पर कहा जा सकता है कि वस्त्रोपयोगी तन्तु मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-प्राकृतिक तन्तु तथा कृत्रिम तन्तु। प्राकृतिक तन्तु उन तन्तुओं को कहा जाता है जिन्हें प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। इन तन्तुओं को पुनः तीन उपवर्गों में बाँटा जा सकता है-वनस्पति-जगत् से प्राप्त होने वाले तन्तु, प्राणी या जन्तु-जगत् से प्राप्त होने वाले तन्तु तथा खनिज स्रोतों से प्राप्त होने वाले तन्तु। वस्त्रोपयोगी कृत्रिम तन्तु मानव-निर्मित हैं। इन्हें यान्त्रिक तथा रासायनिक विधियों द्वारा बनाया जाता है। विभिन्न प्रकार के वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है
(1) वनस्पति-जगत् से प्राप्त होने वाले तन्तु
पेड़-पौधों के विभिन्न भागों से अनेक प्रकार के महत्त्वपूर्ण वस्त्रोपयोगी तन्तु प्राप्त होते हैं। इनमें से मुख्य कपास, जूट, लिनेन तथा हैम्प के तन्तु हैं। वनस्पति-जगत् से प्राप्त होने वाले तन्तुओं में सेल्यूलोस की सर्वाधिक मात्रा पाई जाती है। अतः इन तन्तुओं को ‘सेल्यूलोस तन्तु’ भी कहा जाता है। इन तन्तुओं का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
(क) कपास अथवा रूई ( कॉटन):
कपास के पौधे के बीजों की सतह पर पाए जाने वाले रेशों से वस्त्रोपयोगी तन्तु प्राप्त किए जाते हैं। इन तन्तुओं को ही कपास के तन्तु कहा जाता है।
(ख) अन्य वानस्पतिक तन्तु:
ये प्रायः पौधों के स्तम्भ अथवा तने से प्राप्त किए जाते हैं।
(2) जन्तुओं से प्राप्त तन्तु
रेशम एवं ऊन दो महत्त्वपूर्ण तन्तु हैं जो हमें जन्तुओं से प्राप्त होते हैं। प्राणी-जगत् से प्राप्त होने वाले इन तन्तुओं में प्रोटीन की अधिकता होती है; अतः इन तन्तुओं को प्रोटीन तन्तु’, भी कहा जाता है।
(क) रेशम:
रेशम का कीट प्रायः शहतूत के पौधे की पत्तियों पर अपना जीवन व्यतीत करता है। इसके लारवा शहतूत की पत्तियों पर एक लसदार पदार्थ अपने चारों ओर निर्मित कर (UPBoardSolutions.com) एक संरचना बनाते हैं, जिसे कोया या ‘कोकून’ कहते हैं। इन संरचनाओं को गर्म पानी में डालने पर इनके अन्दर के कीट मर जाते हैं तथा बाह्य खोलों से रेशम के लम्बे तथा महीन तन्तु प्राप्त किए जाते हैं।
(ख) ऊन:
यह मुख्यतः भेड़ों के बालों से निर्मित की जाती है। भारतवर्ष में पाई जाने वाली मैरीनो जाति की भेड़ों से सर्वोत्तम प्रकार की ऊन प्राप्त होती है। भेड़ के मेमनों से प्राप्त ऊन (UPBoardSolutions.com) अति कोमल व उच्च गुणवत्ता की होती है। भेड़ों के अतिरिक्त ऊँट, बकरी व खरगोश आदि प्राणियों के बालों से भी ऊन प्राप्त की जाती है। काश्मीर में पाई जाने वाली बकरियों से प्राप्त ऊन भी सर्वोच्च श्रेणी की होती है।
(3) खनिज पदार्थों से निर्मित तन्तु
(क) सोने-चाँदी से निर्मित तन्तु:
इनका निर्माण मशीनों द्वारा किया जाता है। इन तन्तुओं (महीन तारों) को रेशमी अथवा सूती तन्तुओं के साथ मिश्रित कर वस्त्रों का निर्माण किया जाता है। इन वस्त्रों का जरीदार अथवा किमखाब कहा जाता है। ये बहुमूल्य होते हैं। आजकल इनके स्थान पर ऐलुमिनियम के तन्तुओं का प्रयोग कर कृत्रिम जरीदार एवं सस्ते मूल्य के वस्त्रों का निर्माण किया जाने
लगा है।
(ख) ऐस्बेस्टॉस से निर्मित तन्तु:
इन पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं होता है; अतः इनसे अग्नि शमकों के वस्त्र व अन्य प्रकार के अग्नि से सुरक्षित रखने वाले वस्त्र निर्मित किए जाते हैं।
(4) कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित तन्तु
मनुष्य ने अनेक यान्त्रिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा कई प्रकार के तन्तुओं का आविष्कार किया है। ये कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित तन्तु कहलाते हैं। सामान्यत: आधुनिक समय में निम्न प्रकार के कृत्रिम तन्तु प्रचलित हैं
(क) रेयॉन:
सामान्यतः लकड़ी, बॉस अथवा रूई की लुग्दी बनाकर उसे द्रव में परिवर्तित किया जाता है। इस द्रव को मशीन के महीन छिद्रों में से निकालकर व शुष्क करके लम्बे व चमकदार तन्तु प्राप्त किए जाते हैं। रेयॉन के तन्तु समान व्यास के तथा सेलुलोस के बने होते हैं। अधिक गर्म जल में धोने से अथवा अधिक ताप पर ये कमजोर पड़ जाते हैं। अम्लों व क्षारों का इन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
(ख) नायलॉन:
यह तन्तु कोयला, जल व वायु के संयोग से रासायनिक विधियों द्वारा निर्मित किया जाता है। नायलॉन ताप को सुचालक है। अत्यधिक ताप पर यह पिघलकर नष्ट हो जाता है; अतः नायलॉन के वस्त्रों पर अत्यधिक गर्म इस्तरी (प्रेस) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसको जलाने पर प्लास्टिक के जलने जैसी गन्ध आती है। हल्के अम्लों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्षारों से अप्रभावित रहने के कारण इसे अनेक बार धोया जा सकता है।
(ग) पोलिएस्टर तन्तु:
डैकरॉन एवं टेरीलीन मुख्य पोलिएस्टर तन्तु हैं। हल्के अम्लों को इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्षारों से ये अप्रभावित रहते हैं। अत्यधिक ताप पर ये नष्ट हो जाते हैं। ज्वलनशील होने के कारण इनसे निर्मित वस्त्रों को अग्नि से दूर रखना चाहिए।