वसंत ऋतुका आरंभ था | न सदी, न गमी,कफर भी प्रातःकालीन िवा में ठंडक थी | रात में
िरती की घास भी गीली िो गई थी | िर पत्ती के िाथ में दो-चार ओस के मोती थे| घास के
िर नतनके ने उन मोनतयों का ताि पिन रिा था| उस हदन िब नंदन ने सोकर उठने के
बाद अपनी फुलवारी की घास पर नंगे पााँव चिलकदमी की,तो घास कराि उठी |उसने अपने
शसर पर अभय की छाया करते िुए अमलतास को देिा, पर अमलतास तो िवा के िल्के
झोंकों में झूम रिा था | घास की कराि तो उसके कानों तक पिुाँची िी निीं | घास ने धचढ़
कर मन में सोचा, ‘आसमान जितना ऊाँचा िोकर भी अमलतास ककसी का दिु -ददथ निीं
समझता | मैं सोचती थी, यि मेरा रक्षक िै |’
(क) गदयांि में ककस ऋतुकी ओर संकेत ककया गया िै ?
(ि) घास के नतनकों ने ककसका ताि पिन रिा था ?
(ग) घास के करािने का क्या कारर् था ?
(घ) घास को अमलतास से क्या शिकायत थी?
(ड़) िवा में कौन झूल रिा था ?
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