िवतयरी िच्चे िागे िी रस्सी किसे िहती हैं?
किससे न ममलने िे िारण िवतयरी िे मन में ‘हूि’ उठ रही है?
िवतयरी िै सा जीवन अपनाने िो िहती है ?
भवसागर से पार िराने वाला नाववि िौन है ?
किसे जानने िे बाि ही परमात्मा िा बोि हो सिता है ?
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रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर ...
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