vatslya ras k udahran
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वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल है। वत्सल को दूसरे शब्दों में कहें तो यह प्रेम है। किंतु यहां शृंगार रस के प्रेम और वत्सल प्रेम में सूक्ष्म अंतर है। शृंगार रस का प्रेम दांपत्य जीवन पर आधारित है तथा वात्सल्य रस का प्रेम वत्सल – पुत्र स्नेह , मानव स्नेह , भागवत प्रेम आदि तक विस्तार है।
उदाहरण : ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया। ।
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