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मंगल पांडे
मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 ई: को बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। आपके पिता जी का नाम दिवाकर पांडे जो एक खेती करते थे। और माता का नाम अभय रानी था। आपके घर की हालित कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी इसीलिए युवावस्था में आपको रोजी -रोटी के लिए अंग्रेज सेना में भर्ती होना पड़ा। ब्रिटिश सेना आपको सिर्फ़ 7 रूपए प्रति महिना वेतन देती थी। मंगल पाण्डेय एक ब्राह्मण परिवार से सबंध रखते थे।
जब मंगल पांडेय को यह ज्ञात हुआ की अंग्रेज अधिकारी गाय और सूअर की चर्बी से बने कारतूस बना रहे हैं तब उनके अंदर गुस्से की ज्वाला भड़क उठी और भारतीय लोगों के साथ बुरा बर्ताव होता देख मानो मंगल पांडेय के अंदर गोरों को प्रति घृणा उत्पन्न हो गयी थी।
आपने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर आज़ादी की जंग छेड़ दी। इस क्रांति के दौरान ब्रिटिश रेजिमेंट के लेफिटनेंट बोग़ पर गोली चला दी अचानक निशाना चूक गया और पांडेय ने चालाकी दिखाते हुए उस ब्रिटिश अधिकारी को अपनी तलवार से मार डाला।
कुछ अंग्रेज सेनिकों ने मंगल पांडेय को पकड़ लिया और उन पर कतिल और विरोद्ध प्रदर्शन करने का मुक़दमा चलाया गया और पांडेय ने अंग्रेज अफ़सर की हत्या को स्वीकार कर लिया। इस जुर्म में मंगल पांडेय को फांसी की सज़ा सुनाई गयी। ब्रिटिश जज ने मंगल पांडेय की फांसी 18 अप्रैल 1857 का दिन तय किया परन्तु भारत के लोगों में तो अब देश की स्वतंत्रता के जोश की चिंगारी भड़क उठी थी कोई भी जल्लाद मंगल पांडेय को फांसी देने के लिए नहीं मान रहा था।
मंगल पांडेय की फांसी को लेकर हो रहे कड़े विरोद्ध प्रदर्शन के चलते अंग्रेजों ने पांडेय को फांसी देने के लिए कलकत्ता से जल्लाद बुलाए और उनको बिना बताए के किसको फांसी देनी है आप को 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 वाले दिन ही फांसी की सज़ा दी गयी।
इसके बाद तो मानो देश के लोगों में देश की आज़ादी के प्रति ऐसी लहर दौड़ी मानो इसने तो रुकने का नाम ही नहीं लिया इस घटना के बाद कई सूरवीरों ने जन्म लिया इसके साथ ही भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुयात हो गयी थी
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आजादी की लड़ाई के अगदूत कहे जाने वाले मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे एवं माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। उनका जन्म एक सामान्य ब्राह्मण परिवार हुआ था।
1849 में जब वे 22 साल के थे, तभी से वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए और मंगल बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही रहे।
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्वार्थी नीतियों के कारण मंगल पांडे के मन में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति पहले ही नफरत थी। जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था। सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है जो कि हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए गंभीर और धार्मिक विषय था।
इस अफवाह ने सैनिकों के मन में अंग्रेजी सेना के विरूद्ध आक्रोश पैदा कर दिया। इसके बाद 9 फरवरी 1857 को जब यह कारतूा देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे न लेने को लेकर विद्रोह जता दिया। इस बात से गुस्साए अंग्रेजल अफसर द्वारा मंगल पांडे से उनके हथियार छीन लेने और वर्दी उतरवाने क का आदेश दिया जिसे मानने से मंगल पांडे ने इनकार कर दिया। मंगल पांडे ने राइफल छीनने के लिए आगे बढ़ने वाले अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया। मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया।इतना ही नहीं मंगल पांडे ने रायफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद पांडे ने उनके रास्ते में आए एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बॉब को भी मौत के घात उतार दिया। इस घटना के बाद उन्हें अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार किया गया और उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गई।
फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी, लेकिन अंग्रेजों द्वारा मंगल पांडे को दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन् 1857 को फांसी दे दी गई।
मंगल द्वारा विद्रोह किए जाने के एक महीने बाद ही 10 मई को मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत हुई और यह विद्रोह देखते-देखते पूरे उत्तर भारत में फैल गया।
मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। हालांकि अंग्रेज इसे काबू करने में कामयाब रहे लेकिन मंगल पांडे द्वारा लगाई गई यह चिंगारी ही आजादी की लड़ाई का मूल बीज साबित हुई।
यह विद्रोह ही भारत का प्राथम स्वतंत्रता संग्राम था, जिसमें सिर्फ सैनिक ही नहीं, राजा-रजवाड़े, किसान, मजदूर एवं अन्य सभी सामान्य लोग शामिल हुए। इस विद्रोह के बाद भारत पर राज्य करने का अंग्रेजों का सपना उन्हें कमजोर होता साबित हुआ।