Very short essay on ashoka the great in hindi 350 words
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सम्राट अशोक का नाम भारतीय इतिहास के महान शासकों तथा योद्धाओं में अग्रणी है । ईसा पूर्व सन् 272 ई॰ में अशोक ने मगध प्रदेश का राज्य सँभाला था । इसके पश्चात् अपने 40 वर्षों के शासनकाल में उन्होंने जो ख्याति अर्जित की वह अतुलनीय है ।
वे एक अद्वितीय शासक के रूप में विख्यात हैं जिन्होंने के वल मगध में ही नहीं अपितु भारत के कोने-कोने में सत्य और अहिंसा का प्रचार-प्रसार किया । अशोक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र तथा राजा बिन्दुसार के पुत्र थे । अशोक का बचपन, विकास तथा शिक्षा-दीक्षा उनके पिता के महल (पाटलिपुत्र) में ही हुई । पाटलिपुत्र उस समय मगध राज्य की राजधानी थी ।
262 ई॰ पूर्व अर्थात् राज्य सँभालने के दस वर्ष पश्चात् उन्होंने कलिंग राज्य को अपनी सीमा में मिलाने का निश्चय किया क्योंकि कलिंग उनके अपने साम्राज्य विस्तार की इच्छा के मध्य अड़चन बना हुआ था । उस समय कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) भी मगध की भाँति संपन्न राज्यों में से एक था ।
कलिंग के युद्ध में अशोक ने वीरतापूर्वक युद्ध किया । उसकी सेना कलिंग की सेना को रौंदती चली गई । उस युद्ध में अशोक की सेना कलिंग पर भारी पड़ी और अंतत: अशोक विजयी हुआ तथा कलिंग का साम्राज्य मगध में मिला लिया गया । परंतु इतिहास के पन्नों पर कुछ और ही लिखा जाना था ।
वह युद्ध और कलिंग पर उनकी विजय ने अशोक के जीवन को परिवर्तित कर दिया । युद्ध में भयानक रक्तपात, औरतों, बच्चों तथा युवकों के वध के वीभत्स दृश्य ने उनकी आत्मा को झकझोर दिया। उस समय एक बौद्ध भिक्षु के उपदेशों का अशोक के हृदय पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसकी समस्त जीवनशैली ही बदल गई ।
कलिंग के युद्ध में हुए हृदय-परिवर्तन ने अशोक के व्यक्तित्व को एक नया रूप प्रदान किया । वह बौद्ध-भिक्षु के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया । इसके पश्चात् उसने समस्त राज्य में बौद्ध-धर्म के उपदेशों व शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने का संकल्प किया । उसने तय किया कि वह युद्ध और हिंसा से नहीं अपितु प्रेम और शांति से लोगों के हृदय पर राज्य करेगा ।
कलिंग युद्ध के पश्चात् उसने अपना संपूर्ण जीवन बौद्ध-धर्म के प्रचार-प्रसार की ओर केंद्रित कर दिया । उसने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को अपने व्यक्तिगत जीवन में उतारने की चेष्टा की । उसका मन-मस्तिष्क मानव कल्याण के लिए उग्र हो उठा । अपने शासनकाल में उसने मनुष्यों तथा जानवरों के लिए चिकित्सालय खुलवाए
उसने पशु हत्या पर रोक लगा दी । उसने नैतिकतापूर्ण आचरण हेतु 14 नियम बनाए तथा उन नियमों को अपने राज्य भर के पत्थरों और खंभों पर लिखवा दिया जिससे लोग उसे पढ़कर नैतिकतापूर्ण आचरण करें और जिससे सभी खुशहाल हो सकें । ये नियमों से युक्त खंबे ही अशोक के स्तूप के नाम से जाने जाते हैं । इनके अवशेष आज भी उपलब्ध हैं जो आज भी अशोक की महानता को दर्शाते हैं ।
सम्राट अशोक ने बौद्ध-धर्म के प्रचार-प्रसार को अपने राज्य तक ही सीमित नहीं रखा अपितु विदेशों में भी इसके प्रचार-प्रसार के लिए भिक्षुओं को भेजा । चीन, जापान, तिब्बत, श्रीलंका आदि देशों में बौद्ध-धर्म की नींव सम्राट अशोक ने ही रखी ।
अशोक एक महान योद्धा व शासक ही नहीं अपितु महान चरित्र का स्वामी भी था । उसने देश-विदेश के समक्ष प्रेम और शांति का संदेश उस काल में दिया जब सभी युद्ध को प्राथमिकता देते थे । बौद्ध- धर्म को अपनाने के पश्चात् उसने अपना संपूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया ।
उसकी इस महानता से उसका यश दूर देशों तक फैलता गया । निस्संदेह अशोक भारत के महान शासकों में से एक था ।
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