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(vi) हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी!
तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।।
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हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥
खंजन सुक कपोत मृग मीना। मधुप निकर कोकिला प्रबीना॥
श्रीरामचरित मानस में तुलसीदासजी लिखते हैं कि व्याकुल हो भगवान श्रीराम सीताजी को वन-वन ढूंढते फिर रहे हैं। वह पशु, पक्षियों से सीता के बारे में पूछते हैं। कहते हैं कि हे पक्षियो! हे पशुओ! हे भौंरों की पंक्तियों! तुमने कहीं मृगनयनी सीता को देखा है।
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मथुरा। श्रीराम लीला सभा के तत्वावधान में सीताहरण, खरदूषण वध, लीलाओं का भावपूर्ण मंचन किया गया। भगवान राम जानकी का पुष्पों से शृंगार करते हैं। तभी इंद्र पुत्र जयंत की पत्नी उनके सम्मुख नृत्य करती है। जयंत, पत्नी द्वारा प्रभु की नर लीला की बात सुन कौआ का रूप धारण कर सीताजी के चरणों में चोंच मारता है। राम उसे वाण मारते हैं। वह भागता हुए ब्रह्मलोक, शिवलोक पहुंचता है मार्ग में नारद जी उन्हें भगवान राम की शरण में जाने को कहते हैं। राम उसे क्षमा कर देते हैं। सती अनुसुइया सीताजी को स्त्री धर्म की शिक्षा देती हैं। पंचवटी पहुंचकर जटायु से भेंट होती है।
सुर्पणखा राम के सौंदर्य से प्रभावित होकर विवाह का प्रस्ताव रखती है। लक्ष्मण उसके नाक-कान काट लेते हैं। इसके बाद भगवान राम खरदूषण तथा त्रिसरा का वध कर देते हैं। मारीच सोने का मृग बनकर पंचवटी आते हैं। सीताजी उन पर मुग्ध हो जाती हैं। भगवान राम मारीच के पीछे जाते हैं और वाण मारते हैं। मारीच की आवाज पर सीताजी लक्ष्मण को भी उनके पीछे भेजती हैं। तभी रावण योगी का वेष रखकर छल से सीता का हरण कर लेता है। जटायु भी रावण से युद्ध में घायल हो जाता है। इधर राम और लक्ष्मण वन-वन भटकते हैं। जटायु से मिलते हैं। भगवान राम की इन लीलाओं का मंचन देख दर्शक भाव विभोर हो उठे। प्रसाद सेवा गोपाल प्रसाद अग्रवाल, सुरेंद्र शर्मा ने की