vidashi jiwan per anubhav?
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विद्यार्थी जीवन का अनुभव पर निबंध
सोचने विचारने की प्रक्रिया विद्यार्थी के मन में सदा रहती है। कारण विद्यार्थी जो कुछ भी अपने आस पास देखता है उसके मन में जो बोध होता है, उसकी परछाई को मन में घूमाता रहता है। बोध, ध्यान और विचार मिलकर विद्यार्थी के अनुभूति का निर्माण करते हैं।
इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए शरतचंद्र की मान्याता है जीवन में उम्र के साथ-साथ जो वस्तु मिलती है उसका नाम है अनुभव। अनुभव विचार की संतान है और विचार कर्म की।
बिना ठोकर खाए आदमी की आंख नहीं खुलती। कष्ट सहने पर ही अनुभव होता है। दूसरों के अनुभव जान लेना भी एक अनुभव है।अनुभव एक कला है जिसकी प्राप्ति के लिए पर्याप्त मूल्य चुकाना पड़ता है परंतु उससे जो शिक्षा मिलती है जो ज्ञान प्राप्त होता है वह किसी अन्य साधन द्वारा संभव नहीं।
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का स्वर्णिम काल है अपने भविष्य की तैयारी का समय है। जीवन में शिक्षण का समय है। अनुभव प्राप्त करने का शुभ अवसर है। अनुभवों के सोपान पर चढ़कर ही विद्यार्थी जीवन के दुर्गम मार्ग को सफलता के पुष्पों से सुगंधित कर सकता है।
विद्यार्थी का संसार परिवार और विद्यालय तक ही सीमित रहता है। वह इस सीमित क्षेत्र में रहकर असीम ज्ञान प्राप्त करता है। कूपमंडूक होते हुए भी वह समुद्र सा ज्ञान रखता है। अनुभवहीन होते हुए भी जीवन को विषम स्थिति में डालकर अनुभव प्राप्त करता है।
विद्यार्थी परिवार में रहता है। माता पिता, भाई बहन तथा आगे आने वाले सगे-संबंधियों के व्यवहार से वह शिष्टाचार सीखता है। परिवार की समस्याओं को सुलझाने के प्रयास में रहते कुटुंब के वृद्ध जनों के चिंतन को देखता है, उन्हें समझने का प्रयास करता है। सब्जी फल से लेकर वह राशन तक खरीद कर लाता है। औषधि लाने से लेकर अत्यधिक बीमारी से जूझने और उपचार के उपाय सीखता है। राशन और मिट्टी के तेल की पंक्ति में खड़े होने का अनुभव प्राप्त करता है अतः इस प्रकार जीवन के दैनिक व्यवहार उसे विविध अनुभूति प्रदान करते हैं।
अनुशासन का अनुभव विद्यार्थी काल की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। अनुशासन भंग करने के कारण प्राप्त दंड की अनुभूति अनेक बार जीवन दिशा में परिवर्तन कर देती है। यह कटु अनुभव जीवन भर पर हावी रहता है। खेलकूद में जहां उत्साह, स्फूर्ति, धैर्य,अनुशासन, टीम स्प्रिट, साहस, खेल भावना आदि का उदय होता है वहां जीवन संघर्ष में हंसते-हंसते जूझने की शक्ति की अनुभूति होती है।
विद्यालय की साप्ताहिक सभाओं से किसी विषय पर तर्कसंगत, श्रृंखलाबद्ध और श्रेष्ठ विचार प्रकट करने का अनुभव होता है तो रेड क्रॉस सोसाइटी के कैंपों से पीड़ितों की सेवा करने का तथा स्काउटिंग टेंपो से कर्तव्य के प्रति जागरुक रहने की अनुभूति होती है। भारत भ्रमण में जीवन के कष्टों की झांकी देखना और अनुभव करता है। समय पर भोजन ना मिलने की अकुलाहट, विश्राम ना मिलने की व्यथा, शरीर को स्वच्छ रखने की पीड़ा, स्थान स्थान पर भटकने का कष्ट, भावी जीवन में होने वाले दुख दर्द, पीड़ा को सहने का पूर्वाभ्यास तो पर्यटन में ही हो जाता है।
छात्राओं का अनुभव संसार छात्रों की अपेक्षा अधिक विस्तृत और जीवन उपयोगी होता है। वे घर गृहस्थी के अनुभव विद्यार्थी जीवन में प्राप्त कर लेती हैं। साधारण भोजन बनाने से लेकर विभिन्न व्यंजन बनाने तक, सुई पिरोने से लेकर कलात्मक चित्रकारी करने तक, नृत्य-संगीत, विविध वेशभूषा और शरीर की सजावट को वह गृहस्थ जीवन में प्रवेश से पूर्व ही सीख लेती हैं। दैनन्दिन कार्यों से उनकी अनुभूति परिपक्व होती है।
उच्छश्रंखलता और उद्दंडता की अनुभूति भी विद्यार्थी के अनुभव लोक की सीमा में आती है। कुसंगति के कारण धूम्रपान करना, गुरुजनों का निरादर, माता पिता की आज्ञा, निरर्थक सैर सपाटे, गुंडों जैसी हरकतें, सहपाठियों से मारपीट, गृह कार्य की अवहेलना, सामाजिक कुरीतियों की अनुभूति प्रदान करती है। इसी अनुभूति के बल पर जीवन क्षेत्र में जब वह प्रवेश करता है तो दादा बनता है या फिर समाज द्रोही।
मित्रों की चीजें चुराने, चुराई चीज छुपाने, पकड़े जाने पर बहाने ढूंढने, दूसरों पर दोषारोपण करने की प्रवृत्ति भी छात्र जीवन में ही पड़ती है। उसी अनुभूति के कारण वह जीवन में झूठ बोलता है, दूसरों पर दोषारोपण करता है।
राजनीति की नेतागिरी की अनुभूति भी छात्र जगत की सीमा में आती है। राजनीति का प्रथम लक्षण है पार्टी बाजी। छात्र दल निर्माण करता है। स्कूल या कॉलेज के विभिन्न पदों का चुनाव लड़ता है। पैसा बर्बाद करता है धुआंधार भाषण देता है। दूसरी पार्टी के विद्यार्थियों से झगड़ा करता है और फंसता है दलों की दलदल में। राजनीति करने की इच्छा ही उसे हड़ताल करने की अनुभूति प्रदान की, बड़ों का अनादर करना सिखाया, बसों को जलाने और सरकारी सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने को प्रेरित किया। छोटी-छोटी और बेहूदा मांगों पर ऐंठना, अकड़ना सिखाया।
आज का विद्यार्थी अर्थोपार्जन के अनुभव से शून्य है इस ओर से अनाड़ी है। आज की शिक्षा केवल क्लर्क उत्पन्न करने का साधन है ना की व्यावसायिकता में प्रवीणता, दक्षता उत्पन्न करने का साधन। अर्थोपार्जन की अनुभवहीनता आज के शिक्षित समाज का महान अभिशाप है।
वस्तुतः विद्यार्थी का अनुभव संसार विशाल है, विस्तृत है। जीवन की प्रायः हर कठिनाई की अनुभूति का अंश वह भोग चुका होता है। सुख-दुख की गलियों में झांक चुका होता है। अतः ये अनुभूतियां निसंदेह उसके भावी जीवन में काम आती हैं।
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