Videshi dhuspaith and desh ki suraksha par 250 shabd essay
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राष्ट्रीय सुरक्षा पर अनुच्छेद | Paragraph on National Defence in Hindi
प्रस्तावना:
देश की आजादी प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता । हमें उसकी स्वतत्रता बनाए रखने के लिए सतत् जागरूकता की आवश्यकता होती है ।
देश की स्वतंत्रता और अखण्डता को कायम रखने के लिए हमें अपने साधनों से सुरक्षा-व्यवस्था को गठित करना पड़ता है, ताकि हम किसी सकट का सामना करने के लिए सदैय प्रस्तुत रहे । जो देश अपनी रक्षा करने में स्वय समर्थ नहीं होते, उनकी आजादी अधिक दिन तक नहीं टिक सकती । अत: हर रजतंत्र देश के लिए अपनी सुरक्षा व्यवस्था को भली-भाँति कायम रखना अनिवार्य लै ।
भारत को सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत:
भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद भारत स्वतंत्र हुआ । प्रारंभ से ही पडोसी राष्ट्र भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता रहा है । भारत को 1962 में चीन के हमले तथा 1965 और 1971 मैं पाकिस्तानी हमलो का मुकाबला करना पडा है । हमारी अच्छी सुरक्षा-खावस्था के कारण ही हम अपने देश को बचा पाये हैं ।
आज पाकिस्तान नए-नए किस्म के आधुनिक हथियारों को जमा कर रहा है । उसने परमाणु बम बनाने के साधन तक जुटा लिए हैं । जाहिर है कि कभी भी देश को इनका सामना करना पड़ सकता है । ऐसी स्थिति में देश की सुरक्षा व्यवस्था को और भी मजबूत बनाने की बड़ी आवश्यकता है, ताकि हम हर संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सके ।
सैनिक शक्ति का गठन:
सुरक्षा-व्यवस्था में सशक्त और प्रशिक्षित सैनिको का बड़ा महत्त्व है । हमें अपना सैन्य बल बढाना चाहिए । हालांकि भारत एक विकासशील देश है और हमारे साधन सीमित हैं, लेकिन देश की सुरक्षा से बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता ।
अत: हमें अपने सीमित साधनों को चाहे विकास-कार्यो से हटाकर सेना पर व्यय करना पड़े, तो भी इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । जब आजादी ही नहीं रहेगी, तो विकास का क्या होगा ?
सैनिकों को उचित प्रशिक्षण:
हमें सैनिकों को पर्याप्त प्रशिक्षण देना चाहिए । उन्हें आधुनिक युद्ध की कलाओं का निरन्तर अभ्यास कराते रहना चाहिए ताकि संकट के समय हम उन्हें सीधे युद्ध क्षेत्र में भेज सके ।
आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण:
आज के वैज्ञानिक युग मे केवल सैन्य शक्ति के बल पर ही युद्ध नहीं लड़े जाते । नए-नए अरव-शस्त्र और सैनिक साज-सजा की आवश्यकता भी पडती है । हमें इस दृष्टि से आत्मनिर्भर होने की बड़ी जरूरत है । युद्ध के दौरान अस्त्रों के लिये हम विदेशों का मुँह नहीं ताक सकते ।
प्रस्तावना:
देश की आजादी प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता । हमें उसकी स्वतत्रता बनाए रखने के लिए सतत् जागरूकता की आवश्यकता होती है ।
देश की स्वतंत्रता और अखण्डता को कायम रखने के लिए हमें अपने साधनों से सुरक्षा-व्यवस्था को गठित करना पड़ता है, ताकि हम किसी सकट का सामना करने के लिए सदैय प्रस्तुत रहे । जो देश अपनी रक्षा करने में स्वय समर्थ नहीं होते, उनकी आजादी अधिक दिन तक नहीं टिक सकती । अत: हर रजतंत्र देश के लिए अपनी सुरक्षा व्यवस्था को भली-भाँति कायम रखना अनिवार्य लै ।
भारत को सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत:
भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद भारत स्वतंत्र हुआ । प्रारंभ से ही पडोसी राष्ट्र भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता रहा है । भारत को 1962 में चीन के हमले तथा 1965 और 1971 मैं पाकिस्तानी हमलो का मुकाबला करना पडा है । हमारी अच्छी सुरक्षा-खावस्था के कारण ही हम अपने देश को बचा पाये हैं ।
आज पाकिस्तान नए-नए किस्म के आधुनिक हथियारों को जमा कर रहा है । उसने परमाणु बम बनाने के साधन तक जुटा लिए हैं । जाहिर है कि कभी भी देश को इनका सामना करना पड़ सकता है । ऐसी स्थिति में देश की सुरक्षा व्यवस्था को और भी मजबूत बनाने की बड़ी आवश्यकता है, ताकि हम हर संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सके ।
सैनिक शक्ति का गठन:
सुरक्षा-व्यवस्था में सशक्त और प्रशिक्षित सैनिको का बड़ा महत्त्व है । हमें अपना सैन्य बल बढाना चाहिए । हालांकि भारत एक विकासशील देश है और हमारे साधन सीमित हैं, लेकिन देश की सुरक्षा से बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता ।
अत: हमें अपने सीमित साधनों को चाहे विकास-कार्यो से हटाकर सेना पर व्यय करना पड़े, तो भी इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । जब आजादी ही नहीं रहेगी, तो विकास का क्या होगा ?
सैनिकों को उचित प्रशिक्षण:
हमें सैनिकों को पर्याप्त प्रशिक्षण देना चाहिए । उन्हें आधुनिक युद्ध की कलाओं का निरन्तर अभ्यास कराते रहना चाहिए ताकि संकट के समय हम उन्हें सीधे युद्ध क्षेत्र में भेज सके ।
आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण:
आज के वैज्ञानिक युग मे केवल सैन्य शक्ति के बल पर ही युद्ध नहीं लड़े जाते । नए-नए अरव-शस्त्र और सैनिक साज-सजा की आवश्यकता भी पडती है । हमें इस दृष्टि से आत्मनिर्भर होने की बड़ी जरूरत है । युद्ध के दौरान अस्त्रों के लिये हम विदेशों का मुँह नहीं ताक सकते ।
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