vidhottam ek Rajkumari thi sanskrit me anuvad
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Vithomah ekam rajkumari asit.
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विद्योतमा नाम की एक राजकुमारी बहुत विद्वान थी। उसने घोषणा की थी कि जो पुरुष मुझे शास्त्रार्थ में हरा देगा उसी के साथ मैं शादी करूँगी, अन्य किसी के साथ नहीं। इस रूप लावण्यवती विद्वान राजकुमारी को प्राप्त करने के लिए कितने ही राजकुमार आये। अब राजकुमार क्या शास्त्रार्थ करेंगे ! अपना सा मुँह लेकर वापस लौट गये। विद्वानों के युवान पुत्र भी शास्त्रार्थ करने आये लेकिन राजकुमारी ने सब को हरा दिया।
सब थके। विद्वान पण्डितों के पुत्र भी अपमानयुक्त पराजय पाकर आये यह देखकर पण्डितों के अहं को चोट लगी। उनको गुस्सा आया किः “एक कन्या ने, अबला स्त्री ने हमारे पुत्रों को हरा दिया ! उस राजकुमारी को हम सब सबक सिखाकर ही रहेंगे।”
सब पण्डितों ने मिलकर एक षडयन्त्र रचा। निर्णय किया कि उस गर्वित राजकुमारी की शादी किसी मूर्ख के साथ करा दें तभी हम पण्डित पक्के।
उन्होंने खोज लिया एक मूर्ख…. महामूर्ख। पेड़ पर चढ़कर जिस डाल पर खड़ा था उसी डाल को उसके मूल से काट रहा था। उससे बड़ा मूर्ख और कौन हो सकता है? पण्डितों ने सोचा कि यह दूल्हा ठीक है। राजकुमारी की शादी इसके साथ करा दें। उन्होंने उससे कहाः “हम तेरी शादी राजकुमारी के साथ करा देते हैं लेकिन एक शर्त है। तुम्हें मौन रहना होगा। कुछ बोलना नहीं। बाकी हम सब संभाल लेंगे।”
विद्वानों की सभा में मूर्खों का मौन ही उचित है…
पण्डित लोग उस मूर्ख को ले गये। एक विद्वान के योग्य वस्त्र पहना दिये। जो कुछ वेशभूषा करनी थी, करा दी। उसे बड़ा मौनी गुरु होने का ढोंग रचा कर राजकुमारी के पास ले गये और कहाः
“हमारे गुरु जी आपके साथ शास्त्रार्थ करना चाहते हैं, परन्तु वे मौन रहते हैं। आप में हिम्मत हो तो मौन इशारों से प्रश्न पूछो और इशारों से दिये जाने वाले उत्तर समझो। उनके साथ यदि शास्त्रार्थ नहीं करोगी तो हम समझेंगे कि तुम कायर हो।”
राजकुमारी के लिए यह चुनौती थी। उसको हाँ कहना पड़ा। पण्डितों की सभा मिली। इस अभूत पूर्व शास्त्रार्थ देखने सुनने के लिए भीड़ इकट्ठी हो गई। पण्डित लोग इन मौनी गुरु के कई शिष्य होने का दिखावा करके उनको मानपूर्वक सभा में ले आये और ऊँचे आसन पर बिठा दिया।
बिना वाणी का शास्त्रार्थ शुरु हुआ। राजकुमारी ने गुरु जी को एक उँगली दिखाई। गुरु जी समझे कि यह राजकुमारी मेरी एक आँख फोड़ देना चाहती है। उन्होंने बदले में दो उँगलियाँ दिखाई कि तू मेरी एक फोड़ेगी तो मैं तेरी दो फोड़ूँगा।
पण्डितों ने अपने गुरुजी की भाषा का अर्थघटन करते हुए राजकुमारी से कहाः “आप कहते हैं कि ईश्वर एक है हमारे गुरु जी कहते हैं कि एक ईश्वर से यह जगत नहीं बनता। ईश्वर और ईश्वर की शक्ति माया, पुरुष और प्रकृति इन दो से जगत भासता है।”
बात युक्तियुक्त और शास्त्रसम्मत थी। राजकुमारी कबूल हुई। फिर उसने दूसरा प्रश्न करते हुए हाथ का पंजा दिखाया। मूर्ख समझा कि यह राजकुमारी ‘थप्पड़ मारूँगी’ ऐसा मुझे कहती है। उसने मुट्ठी बन्द करके घूँसा दिखायाः “यदि तू मुझे थप्पड़ मारेगी तो मैं तुझे घूँसा मारूँगा, नाक कुचल दूँगा।”
पण्डितों ने राजकुमारी से कहाः “आप कहती हैं कि पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। हमारे गुरुजी कहते हैं कि उन पाँचों इन्द्रियों को सिकुड़ने से परमात्मा मिलते हैं।”
फिर राजकुमारी ने सात उँगलियाँ दिखाईं। मूर्ख ने उस संख्या को बढ़ाकर नव ऊँगलीयाँ दिखाईं। प्रश्न से उत्तर सवाया होना चाहिए न? पण्डितों ने राजकुमारी से कहाः “आप सात उँगलियों के द्वारा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, मन और बुद्धि, इस प्रकार सात की संख्या बताती हैं। हमारे गुरुजी कहते हैं कि उसके साथ चित्त और अहंकार भी गिनने चाहिए। इस प्रकार सब मिलाकर नौ होते हैं।”
राजकुमारी ने जिह्वा दिखाई। मूर्ख ने मुँह पर हाथ धर दियाः ”यदि तू जिह्वा दिखाएगी तो मैं तेरा मुँह बन्द कर दूँगा।”
आप कहती हैं जिह्वा से बोला जाता है लेकिन हमारे गुरुजी कहते हैं कि वाणी का संयम करने से शक्ति बढ़ती है। बोलने से परमात्मा नहीं मिलते। मौन का अभ्यास चाहिए, अन्तर्मुख होने का अभ्यास होना चाहिए, जिह्वा को छिपाने का अभ्यास चाहिए। व्यर्थ बोलने वाले को जूते खाने पड़ते है।
इस प्रकार संस्कृत के विद्वानों की सभा में शास्त्रार्थ हुआ। पण्डितों ने अपने महाविद्वान गुरुजी के मौन इशारों का अर्थघटन शास्त्रोक्त विचारधारा के अनुसार करके दिखाया। उनकी शास्त्र सम्मत और युक्तियुक्त बातें राजकुमारी को माननी पड़ीं। उस मूर्ख के साथ राजकुमारी की शादी हो गई।
रात्री हुई। दोनों महल में गये। राजकुमारी ने खिड़की से बाहर झाँका तो बाहर ऊँट खड़ा था। उसने अपने पतिदेव से संस्कृत में पूछाः “यह क्या है?” संस्कृत में ऊँट को ऊष्ट्र कहते हैं। मूर्ख उस शब्द को क्या जाने? राजकुमारी समझ गई कि यह तो मूर्ख है। धक्का देकर घर से बाहर निकाल दिया और बोलीः
“मूर्ख ! तू मेरा पति कैसे हो सकता है? जा विद्वान होकर ही मुँह दिखाना। शादी तो हो गई। मैं दूसरी शादी नहीं कर सकती। लेकिन विद्वान होकर आयेगा तभी स्वीकार करूँगी।
युवक को चोट लग गई। वह जंगल में चला गया। उसने निश्चय किया कि वह संस्कृत का महान विद्वान होकर ही रहूँगा।