Vidyalay patrika par nibandh
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प्राचार्य की कलम से
प्रिय छात्र / छात्राओं मुझे यह बताते हुए बहुत ही ख़ुशी हो रही है की हमारी पत्रिका का यह दूसरा संस्मरण है | सबसे पहले तो में उन सभी शिक्षको और विद्यार्थियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हू , जिन्होंने इस पत्रिका में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया | ईश्वर को धन्यवाद्, जिसने मुझे प्राचार्य के पद पर कार्य करने का अवसर प्रदान किया , मेरा लक्ष्य है कि ईमानदारी से निरंतर सुधार का दृष्टिकोण रखते , लक्ष्यों एवं महतवपूर्ण कार्यो , विचारो को संगठित कर एक साथ करना ,प्रशिक्षण की गुणवत्ता में लगातार सुधार करते हुए प्रशिक्षण देना जिससे स्कूल निरंतर विकास के पथ पर आगे बड़े ।आज समाज और देश के सामने सबसे बड़ा प्रश्न है, शिक्षा किसलिए दी जाये ? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षा-विशारदों ने शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य बतलाए हैं । किसी विद्वान का मत है कि "विद्या के लिए विद्या है', तो दूसरे विद्वान का कथन है कि आजीविका या व्यवसाय के लिए तैयार करना ही शिक्षा का उद्देश्य है । कई विद्वानों का मत है कि मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा अन्य सभी पहलुओं से विकास करना ही शिक्षा का उद्देश्य है । कुछ लोग सच्चरित्र निर्माण को शिक्षा का उद्देश्य मानते हैं । यह सभी उद्देश्य मिलते जुलते हैं ।
वैदिक ऋषियों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य है मानव का सर्वांगीण विकास । अर्थात् मानव जीवन का जो उद्देश्य है, उस उद्देश्य तक पहुंचना ही शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए । मानव जीवन का उद्देश्य है, पुरुषार्थ=मोक्ष। इसके लिए हमें शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक और नैतिक सभी नियमों का ज्ञान होना चाहिए । घर में हम माता पिता के साथ कैसे व्यवहार करें, समाज में कैसे उत्तम नागरिक बनें, साथियों के साथ कैसा व्यवहार करें, आजीविका के लिए क्या करें, सामाजिक तथा राजनैतिक समस्याओं का क्या हल निकालें । संक्षेप में हर बात में हम पूर्ण हों, किसी में अधूरे न रहें, यह वैदिक ऋषियों की शिक्षा का उद्देश्य है । यदि हम अपना सर्वांगीण विकास करते हुए पुरुषार्थ को प्राप्त कर सकें, तो हमारी शिक्षा सफल शिक्षा है,अन्यथा नहीं ।
में मानता हू शिक्षा अति आवश्यक है क्यों की -"व्यक्ति अपने ज्ञान से महान होता है जन्म से नहीं."
हमारा उद्येश्य है कि विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास हो |
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Explanation:
प्रस्तावना:
स्कूल मैगजीन एक सावधिक पत्रिका होती है । रकूल के प्रबंधक इसे प्रकाशित करते हैं । अध्यापकों की सहायता से विद्यार्थी इसका प्रबन्ध करते हैं । स्कूल मैगजीन में निबन्ध, कवितायें, कहानियों तथा अन्य लेख होते हैं ।
इन्हें हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में विद्यार्थी लिखते हैं । कुछ लेख आदि अध्यापकों द्वारा भी लिखे जाते हैं । मैगजीन के सभी लेख राजनीति से परे होते हैं ।
अन्य पत्रिकाओं से भिन्न:
स्कूल मैगजीन कई दृष्टियों से अन्य पत्रिकाओं से भिन्न होती हैं । यह केवल विद्यार्थियो और अध्यापकों के बीच वितरित होती है । राह सामान्य जनता के लिए नही होती । इसलिए इससे जनता की रुचि का कुछ भी नहीं होता ।
सामान्यतया इससे स्कूल के खेलकूद के समाचार होते हैं । पिछली परीक्षाओं के परिणामों का भी इससे जिक्र होता है । स्कूल का नाम रोशन करने वाले विद्यार्थियों के इसमें फोटो दिए जाते हैं और उनका उल्लेख किया जाता है ।
रकूल मैगजीन के लाभ:
स्कूल मैगजीन के अनेक लाभ होते हैं । एक तो इससे विद्यार्थियों को लेखन को प्रेरणा मिलती है । लड़के आमतौर से स्वभावत: पढ़ने में रुचि लेते हैं और लिखने के काम से जी घुसते है । मैगजीन में लेख देने के लिए उन्हे कुछ-न-कुछ लिखना पड़ता है । अपनी मैगजीन के लिए उन्हे नियमित रूप रने पढ़ना और लिखना पड़ता है । इस प्रकार वे लिखने की कला सीख जाते हैं ।
दूसरे, स्कूल मैगजीन विद्यार्थियों को अधिक लगन के साथ पढ़ने को प्रेरित करती है । स्कूल मैगजीन में अपना नाम और फोटो देखने के लिए वे बड़े उत्साह से खेलकूदों में भी भाग लेते हैं । प्रत्येक स्कूल मैगजीन में विद्यार्थियों की प्रगति का विवरण होता है ।
इसमें उनके द्वारा जीते गये पुरस्कारों और तमगों का वर्णन होता है । इसलिए वे विद्यार्थी अपनी पढ़ाई और खेलकूद में कठिन परिश्रम करते हैं, जो अपना नाम स्कूल मैगजीन में देखना चाहते है । तीसरे, स्कूल मैगजीन विद्यार्थियो को एक-दूसरे के नजदीक लाने में सहायता करती है । मैगजीन में लेख देने वाले विद्यार्थियों को अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए अन्य बहुत-नही पुस्तके पढ़नी पड़ती हैं । इसके अलावा वे स्वयं विचार करना सीख लेते हैं ।
सोच-विचार से उनकी तर्क बुद्धि प्रखर होती है । मैगजीन के लिए नियमित रूप से लिखते रहने से उनकी लेखन-कला विकसित होती है । इससे उनकी भाषा भी सुधर जाती है और धीरे-धीरे भाषा पर अधिकार हो जाता
हैं । लड़कों के बीच प्रतिद्वन्दिता की सही भावना पैदा होती है । अध्यापको द्वारा लिखे गए निबन्धो और लेखो में विद्यार्थियों के लाभ के लिए अनेक व्यावहारिक सुझाव होते हैं । योग्य अध्यापकों के लेखन से लड़के भी अच्छे लेख लिखना सीख लेते हैं ।
इसका प्रबन्ध:
स्कूल मैगजीन से विद्यार्थियों का, निजी संबंध होता है । वे स्वयं ही इसका प्रबन्ध करते हैं, जिसमें अध्यापक उनका मार्गदर्शन और सहायता करते हैं । इसका मुख्य सम्पादक स्कूल का प्रिंसिपल होता है । अध्यापकों तथा विद्यार्थियों की मिली-जुली कमेटी बनाई जाती है, जो इसकी छपाई आदि की व्यवस्था करती है । वरिष्ठ अध्यापकों तथा उच्च कक्षाओं के प्रतिभावान छात्र उप-सम्पादक का काम करते हैं ।
उपसंहार:
हर स्कूल की अपनी निजी मैगजीन होनी चाहिए । स्कूल मैगजीन भावी महान लेखकों के प्रारभिक लेखन का रिकॉर्ड रखती है । स्कूल की मैगजीन का महत्त्व अध्यापक से कम नहीं है । इससे विद्यार्थियों के दिमाग और कलम दोनों की ही नियमित कसरत हो जाती है ।