Hindi, asked by Anushkad8046, 11 months ago

Vidyarthi air anushasan par nibandh

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Answered by sourya1794
19

\bf\:{\underline{Correct\:Question}}:-

विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध |

\bf\:{\underline{Answer}}:-

विद्यार्थी' शब्द दो शब्दों के योग से बना है-विद्या + अर्थी अर्थात् विद्या को चाहने वाला। 'विद्यार्थी' शब्द की तरह 'अनुशासन । शब्द भी दो शब्दों के योग से बना है-अनु + शासन। अनुशासन का अर्थ है-अपने को वश में रखना, आदेश या नियमों का पालन करना। नियंत्रण अथवा व्यवस्था का नाम ही अनुशासन है। यद्योपि अनुशासन की आवश्यकता जीवन के हर क्षेत्र में है तथापि विद्यार्थियों के लिए तो यह नितांत आवश्यक है, क्योंकि विद्यार्थी जीवन भावी जीवन की आधारशिला है। इस काल में जैसे संस्कार, जैसी प्रवृत्तियों और जिन आदतों का विद्यार्थी में विकास होता है, वे जीवनपर्यंत साथ नहीं छोड़तीं। जिस प्रकार किसी भवन का स्थायित्व उसकी आधारशिला की दृढ़ता पर निर्भर होता है,उसी प्रकार मानव जीवन की सफलता उसकी बाल्यावस्था और विद्यार्थी काल के सिंचन और संरक्षण पर आश्रित होती है।विद्यार्थी जीवन ही वह काल है जिसमें शिशु के चरित्र, व्यवहार तथा आचरण की जैसा चाहे, रूप दिया जा सकता है। यह अवस्था भावी वृक्ष की उस कोमल शाखा की भाँति है, जिसे जिधर चाहे, उधर मोड़ा जा सकता है । पूर्णतया विकसित वृक्ष की शाखाओं को मोड़ना संभव नहीं। उन्हें मोड़ने का प्रयास करने पर वे टूट तो सकती हैं, मुड़ नहीं सकतीं। इसीलिए प्राचीन काल से ही विद्यार्थी जीवन के महत्त्व को स्वीकार किया गया है तथा इस काल को भावी जीवन की तैयारी का काल मानकर इसमें तरह-तरह के सुसंस्कार और सद्वृत्तियाँ डालने का प्रयास किया जाता है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्राचीन काल में प्रत्येक बालक का अपने घर से दूर गुरु के आश्रम में रहकर, गुरु के कठोर अनुशासन का पालन करना पड़ता था अनुशासनहीनता विद्यार्थी को बार-बार पग-पग पर लांछित और प्रताड़ित करती है। विद्यार्थियों के कोमल मस्तिष्क पर पशिचमी सभ्यता, फैशन परस्ती, दूरदर्शन तथा चलचित्र का प्रभाव पडने के कारण वे अनुशासनहीन तथा संस्कारविहीन होते जा रहे है। अनुशासनहीनता का दूसरा कारण दृषित शिक्षा प्रणाली भी है । आज की शिक्षा एक पवित्र काम न रहकर एक व्यवसाय बन गया है। इस शिक्षा का चरित्र, संस्कारों या नैतिक मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं। विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता को बढ़ाने में राजनीतिक दल भी पीछे नहीं हैं। वे अपने स्वार्थों की पू्ति के लिए विद्यार्थियों को बहलाकर उन्हें अनुशासनहीन बना देते हैं। विद्यार्थियों को अनुशासित करने के लिए अनेक मोर्चों से प्रयास करना होगा। इसके लिए शिक्षा- पद्धति में परिवर्तन, व्यावसायिक एवं रोज़गारोन्मुख शिक्षा पर जोर, अश्लील फ़िल्मों पर रोक, राजनीतिज्ञों द्वारा विद्यार्थियों के अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग पर रोक,परीक्षा पद्धति में सुधार, दूरदर्शन पर अच्छे कार्यक्रमों का प्रसारण, माता-पिता एवं गुरुजनों की जागरूकता, विद्यार्थी को रचनात्मक दिशा में प्रवृत्त होने की प्रेरणा जैसे कदम उठाने पड़ेंगे। छात्रों का भी यह कर्त्तव्य है कि वे अपने उत्तरदायित्व को समझें और स्वेच्छा से अनुशासन का पालन करें। वे याद रखें कि वे उस महान देश की भावी पीढ़ी हैं, जिसने पूरे विश्व को कभी ज्ञान की रश्मियाँ दी थीं तथा कभी उनका यह देश धर्मगुरु के आसन पर आसीन था। उन्हें यह प्रण करना चाहिए कि वे बड़े होकर अपने देश को उन्नति के उसी शिखर पर पहुँचाने का प्रयास करेंगे जिस पर वह कभी था।

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