Vidyarthi Jeevan Mein Mata Pita evam Adhyapak ka Sahyog nibandh 350 shabdo mein
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माता-पिता हमारे जीवन के सबसे पहले शिक्षक होते हम उनसे बहुत कुछ सीखते है | हमें अपने माता-पिता की सिखाई हुए रास्ते पर चलना चाहिए |
माता-पिता की तरह जीवन में मुसीबतों से लड़ने की ताकत ले कर आगे बढ़ना चाहिए | माता-पिता के द्वारा सिखाए हुए संस्कार का हमेशा पालन करना चाहिए| माता-पिता की हर बात माननी चाहिए क्योंकि वह हमें कभी भी गलत रास्ता नहीं दिखाते है | माता-पिता पिता अपनी जरूरतों को पीछे रख कर हमारे लिए सब कुछ करते है | हमें हमेशा अच्छा रास्ता दिखाते है | बच्चे अपने माता-पिता के लिए हमेशा बच्चे रहेंगे वह हमेशा साथ देते है और सही रास्ता दिखाते है |
माता-पिता के बाद में अध्यापक हमारे शिक्षक है जो हमें जीवन में कामयाबी दिलाते है|
हमें शिक्षा का ज्ञान देते है | सही रास्ता चुनने में हमेशा हमारा साथ देते है |
अध्यापक हमारे जीवन में एक ऐसे व्यक्ति हैं जो हमें सही रास्ता और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है| अध्यापक अपने छात्रों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। अध्यापक के बिना शिष्य कुछ भी नहीं कर सकता | हमारे शिक्षक पूरा भविष्य उज्ज्वल और सफल बनाने के लिए हमारा साथ देते हैं। अध्यापक हमारे जीवन में एक ऐसे व्यक्ति हैं जो हमें सही रास्ता और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है| अध्यापक अपने छात्रों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। अध्यापक के बिना शिष्य कुछ भी नहीं कर सकता | शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ की हड्डी होते हैं। वे विद्यार्थियों के चरित्र का निर्माण करने और उसे भारत के आदर्श नागरिक के आकार में ढालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे माता-पिता हमें प्यार और गुण देने के लिए जिम्मेदार हैं उसी तरह कि, हमारे शिक्षक पूरा भविष्य उज्ज्वल और सफल बनाने के लिए हमारा साथ देते हैं। शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ की हड्डी होते हैं। वे विद्यार्थियों के चरित्र का निर्माण करने और उसे भारत के आदर्श नागरिक के आकार में ढालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे माता-पिता हमें प्यार और गुण देने के लिए जिम्मेदार हैं उसी तरह कि, हमारे शिक्षक पूरा भविष्य उज्ज्वल और सफल बनाने के लिए हमारा साथ देते हैं।
संसार में ईश्वर का स्थान माता-पिता के बाद पूज्यनीय होता है। ईश्वर परम शक्ति है। इस सृष्टि को वही चलाता है। वो दिखाई दे या न दे परन्तु वह सर्वश्रेष्ठ है। माता-पिता जन्म देते हैं और लालन-पालन करते हैं। बच्चे के वे सबसे बड़े गुरु हैं इसलिए ईश्वर के बाद उनका स्थान है। माता-पिता की छत्र-छाया में रहकर वह विकास पाता है। माता-पिता उस अविकसित पौधे को प्रेम और वात्सल्य रूपी पानी से बढ़ा करते हैं। माता-पिता ही उस पौधे का संसार से परिचय कराते हैं। उसे इस लायक बनाते हैं कि वह संसार में सर उठाकर खड़ा हो सके। उसके बौद्धिक विकास के लिए वह हर संभव कार्य करते हैं। उसे उच्च शिक्षा दिलवाते हैं तथा उसका व्यक्तित्व भी निखारते हैं। उसे संसार में संघर्ष करने के लिए तपाते हैं। ताकि उसकी तपन से जो बने वह शुद्ध सोने के समान खरा हो। माता-पिता की महिमा अपरम पार है। इनके बाद गुरू का स्थान होता है। माता-पिता के बाद बच्चे इसके संपर्क में आता है, वह है गुरु। गुरू एक विकसित पौधे को बढ़ने के लिए सही दिशा तथा ज्ञान देता है। वह संसार में रहने योग्य बनाता है और जीवन में आगे बढ़ाता है। इन सबके महत्व को देखते हुए हमारे भी कर्तव्य बनते हैं कि हम उनका सम्मान करें। उनके अपमान न करें। ऐसे कार्य करें, जिससे उनका मान बढ़ें। उनकी आज्ञाओं को सिर झुका कर माने। उन्हें प्रसन्न रखें।
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