vidyarthiyon mein badhti anushasan hinta essay for class 8 please
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विद्यार्थी में बढती अनुशासन -हीनता
विद्या +अर्थी अर्थात विद्या के हेतु जिनका जन्म हुआ हो वो है विद्यार्थी I लेकिन नित्य बढती अनुशासनहीनता के कारण आजकल के विद्यार्थियों ने उसका अर्थ बदल दिया है I वो इस प्रकार है जो विद्या की अर्थी निकाल दे वही विद्यार्थी है I माता पिता गुरु या कोई भी श्रेष्ठ उनलोंगों के लिए विद्यार्थियों के प्रणाम करने का अंदाज़ बदल गया है I एक हाथ से घुटने तक जाते हैं यही प्रणाम हो गया Iश्रेष्ठ जन उनके बढ़ते हुए हाथ को देखकर पहले ही खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं Iशिक्षक का सम्मान इनके शब्द कोष में नहीं है I शिक्षक अगर वर्ग में पढ़ा रहे होते हैं तो उद्दंड छात्र पीछे से उनकी नक़ल उतार रहे होते हैं I कभी उनकी चाल नक़ल कभी उनके बाल की नक़ल Iकभी उनके पीछे पीछे बच्चे चलने तक लगते हैं
उनमें जो ज्ञान है उसे लेना नहीं चाहते I क्यूंकि वो प्यास ही नहीं है I शिक्षक के सामने कहीं रास्ते पर चौराहे पर वे तम्बाकू खाते हैं या पान मसाला गुठका आदि उसका एक मुख्य कारण ये भी है कि शिक्षक पढ़ा सकते हैं लेकिन किसी एक भी बच्चे को वे सजा नहीं दे सकते I इसके चलते अनुशासनहीनता और बढ़ रही है Iपहले कबीर ने लिखा था :
गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है ,गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट I
भीतर हाथ सहार दे ,बाहे मारे चोट II
गुरु का काम अन्दर से सहारा देना है और बाहर से हलके हाथों चोट भी लेकिन आज के समय में ऐसा हो नहीं पा रहा है I जब छात्र अनुशासनहीन हो जायेंगे तो आगे देश के व्यवस्था के लिए हम क्या सोचेंगे I
जहाँ शिक्षक निरीह हो जायेंगे वहां के छात्र अनुशासनहीन ज़रूर हो जायेंगे I
'अनुशासन सफलता की कुंजी है ' '- यह किसी ने सही कहा है। अनुशासन मनुष्य के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। यदि मनुष्य अनुशासन में जीवन-यापन करता है, तो वह स्वयं के लिए सुखद और उज्जवल भविष्य की राह निर्धारित करता है। मनुष्य द्वारा नियमों में रहकर नियमित रूप से अपने कार्य को करना अनुशासन कहा जाता है। यदि किसी के अंदर अनशासनहीनता होती है तो वह स्वयं के लिए कठिनाईयों की खाई खोद डालता है। विद्यार्थी हमारे देश का मुख्य आधार स्तंभ है। यदि इनमें अनुशासन की कमी होगी, तो हम सोच सकते हैं कि देश का भविष्य कैसा होगा।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बहुत महत्व होता है। अनुशासन के द्वारा ही वह स्वयं के लिए उज्जवल भविष्य की संभावना कर सकता है। यदि उसके जीवन में अनुशासन नहीं होगा, तो वह जीवन की दौड़ में सबसे पिछड़ जाएगा। उसकी अनुशासन हीनता उसे असफल बना देगी। विद्यार्थी के लिए अनुशासन में रहना और अपने सभी कार्यों को व्यवस्थित रूप से करना बहुत आवश्यक है। यह वह मार्ग है जो उसे जीवन में सफलता प्राप्त करवाता है। विद्यार्थियों को बचपन से ही अनुशासन में रखना चाहिए। अनुशासन में रहने की सीख उसे अपने घर से ही प्राप्त होती है। विद्यार्थी को चाहिए कि विद्यालय में रहकर विद्यालय के बनाए सभी नियमों का पालन करे। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जा रहे सभी पाठों को अध्ययन पूरे मन से करना चाहिए। अध्यापकों द्वारा घर के लिए दिए गए गृहकार्य को नियमित रूप से करना चाहिए। समय पर अपने सभी कार्य करने चाहिए।
विद्यार्थी को चाहिए कि प्रतिदिन प्रात:काल उठकर व्यायाम करे, अध्यापन करे, स्नान आदि करे और विद्यालय के लिए शीघ्र ही तैयार हो जाए। समय पर विद्यालय जाए। घर आकर समय पर भोजन करे, समय पर अध्यापन कार्य और खेलने भी जाए। रात्रि के भोजन के पश्चात समय पर सोना भी विद्यार्थी के लिए उत्तम रहता है। इस तरह का व्यवस्थित जीवन-शैली उसे तरोताज़ा रखती है और जीवन में स्वयं को सदृढ़ भी रखती है।
यदि आँखें उठा कर देखा जाए तो अनुशासन हर रूप में विद्यमान है। सूर्य समय पर उगता और समय पर अस्त हो जाता है। जीव-जन्तु भी इसी अनुशासन का पालन करते हुए दिखाई देते हैं। पेड़-पौधों में भी यही अनुशासन व्याप्त रहता है। घड़ी की सुई भी अनुशासन का पालन करे हुए चलती है। ये सब हमें अनुशासन की ही शिक्षा देते हैं।
यदि दृष्टि डाली जाए तो समाज में चारों तरफ अनुशासनहीनता दिखाई देती है। यही कारण है कि देश की प्रगति और विकास सही प्रकार से हो नहीं पा रहा है। यदि विद्यर्थियों में अनुशासन नहीं होगा तो समाज की दशा बिगड़ेगी और यदि समाज की दशा बिगड़ेगी तो देश कैसे उससे अछुता रहेगा। हमें चाहिए कि विद्यालयों में अनुशासन पर ज़ोर देना चाहिए। विद्यार्थियों का मन चंचल और शरारती होता है। अनुशासन उनके चंचल मन को स्थिर करता है। यह स्थिरता उन्हें जीवन के सघर्ष में दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ने में सहायक होती है। यह सब अनुशासन के कारण ही संभव हो पाता है।
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