Vigyan vardan ya abhishaap essay in hindi language
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प्रस्तावना -
आवश्यकता अविष्कारों की जननी है और विज्ञान है उसका मार्ग। 'विज्ञान' का शाब्दिक अर्थ है - विशेष या विश्लेषित ज्ञान। विज्ञान एक शक्ति है, जो नित नए आविष्कार करती है। यह शक्ति न तो अच्छी है, न बुरी। अगर हम उस शक्ति से मानव-कल्याण के कार्य करें तो वह 'वरदान' प्रतीत होती है। अगर उसी से विनाश करना शुरू कर दे तो वह 'अभिशाप' बन जाती है।
विज्ञान वरदान के रूप में -
आज विज्ञान का युग है। विज्ञान ने आज उन सब बातों को संभव कर दिखाया है जिन्हें कभी असंभव माना जाता था। विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं, बहरों को सुनने की ताक़त। लाइलाज रोगों की रोकथाम की है तथा अकाल मृत्यु पर विजय पाई है। विज्ञान की सहायता से यह युग बटन-युग बन गया है। बटन दबाते ही वायु-देवता हमारी सेवा करने लगते हैं, इंद्र-देव वर्षा करने लगते हैं, कहीं प्रकाश जगमगाने लगता है तो कहीं शीत-उष्ण वायु के झोंके सुख पहुँचाने लगते हैं। रोटी पकाने, पानी गर्म करने, कपड़े धोने व सुखाने, बड़ी-बड़ी मशीनों को चलाने में विद्युत हमारी सहायक होती है। बस, गाड़ी, रेल, पाताल-रेल, वायुयान आदि ने स्थान की दुरी को बाँध दिया है। टेलीफोन और इंटरनेट के द्वारा तो हम सारी वसुधा से संपर्क करके उसे वास्तव में कुटुंब बना देते हैं। कंप्यूटर की सहायता से आज हम कठिन से कठिन गणना और बहुत सारी कार्यों को न्यूनतम समय में त्रुटिहीन तरीके से कर सकते हैं। विज्ञान के कोटि-कोटि वरदानों का विवरण देना संभव नहीं। ऐसे में इतना ही कहा जा सकता है कि सचमुच विज्ञान 'वरदान' ही तो है।
विज्ञान एक अभिशाप के रूप में -
मनुष्य ने जहाँ विज्ञान से सुख के साधन जुटाए हैं, वहाँ दुःख के अंबार भी खड़े कर लिए हैं। विज्ञान के द्वारा हमने अणु-बम, परमाणु-बम, तथा अन्य ध्वंसकारी अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण कर लिए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब दुनिया में इतनी विनाशकारी सामग्री इकट्ठी हो चुकी है कि उससे सारी पृथ्वी को अनेक बार नष्ट किया जा सकता है। प्रदूषण की समस्या अलग फैली हुई है। नित नए असाध्य रोग पैदा होते जा रहे हैं, जो वैज्ञानिक उपकरणों के अंधाधुंध प्रयोग के दुष्परिणाम हैं। वैज्ञानिक प्रगति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मानव-मन पर भी हुआ है। पहले जब मानव निष्कपट था, निस्वार्थ था, भोला था और बेपरवाह था, वह अब छली, स्वार्थी, धुर्त, भौतिकवादी तथा तनावग्रस्त हो गया है। नैतिक मूल्य नष्ट हो गए हैं।
निष्कर्ष -
विज्ञान तो एक शक्ति है जिसका उपयोग कल्याण के लिए भी हो सकता है और संहार के लिए भी। वास्तव में विज्ञान को वरदान या अभिशाप बनानेवाला मनुष्य है। उसे वरदान या अभिशाप बनाना मनुष्य की विचारधारा पर आधारित है। आज के राजनीतिज्ञों को अपनी स्वार्थ भावना का परित्याग कर देना चाहिए, तभी विज्ञान के वरदानों का उपयोग मानवजाति को पूर्णतः सुखी एवं समृद्ध करने में हो पायेगा, अन्यथा नहीं। हमें याद रखनी चाहिए - 'विज्ञान अच्छा सेवक है लेकिन बुरा हथियार।'
आवश्यकता अविष्कारों की जननी है और विज्ञान है उसका मार्ग। 'विज्ञान' का शाब्दिक अर्थ है - विशेष या विश्लेषित ज्ञान। विज्ञान एक शक्ति है, जो नित नए आविष्कार करती है। यह शक्ति न तो अच्छी है, न बुरी। अगर हम उस शक्ति से मानव-कल्याण के कार्य करें तो वह 'वरदान' प्रतीत होती है। अगर उसी से विनाश करना शुरू कर दे तो वह 'अभिशाप' बन जाती है।
विज्ञान वरदान के रूप में -
आज विज्ञान का युग है। विज्ञान ने आज उन सब बातों को संभव कर दिखाया है जिन्हें कभी असंभव माना जाता था। विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं, बहरों को सुनने की ताक़त। लाइलाज रोगों की रोकथाम की है तथा अकाल मृत्यु पर विजय पाई है। विज्ञान की सहायता से यह युग बटन-युग बन गया है। बटन दबाते ही वायु-देवता हमारी सेवा करने लगते हैं, इंद्र-देव वर्षा करने लगते हैं, कहीं प्रकाश जगमगाने लगता है तो कहीं शीत-उष्ण वायु के झोंके सुख पहुँचाने लगते हैं। रोटी पकाने, पानी गर्म करने, कपड़े धोने व सुखाने, बड़ी-बड़ी मशीनों को चलाने में विद्युत हमारी सहायक होती है। बस, गाड़ी, रेल, पाताल-रेल, वायुयान आदि ने स्थान की दुरी को बाँध दिया है। टेलीफोन और इंटरनेट के द्वारा तो हम सारी वसुधा से संपर्क करके उसे वास्तव में कुटुंब बना देते हैं। कंप्यूटर की सहायता से आज हम कठिन से कठिन गणना और बहुत सारी कार्यों को न्यूनतम समय में त्रुटिहीन तरीके से कर सकते हैं। विज्ञान के कोटि-कोटि वरदानों का विवरण देना संभव नहीं। ऐसे में इतना ही कहा जा सकता है कि सचमुच विज्ञान 'वरदान' ही तो है।
विज्ञान एक अभिशाप के रूप में -
मनुष्य ने जहाँ विज्ञान से सुख के साधन जुटाए हैं, वहाँ दुःख के अंबार भी खड़े कर लिए हैं। विज्ञान के द्वारा हमने अणु-बम, परमाणु-बम, तथा अन्य ध्वंसकारी अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण कर लिए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब दुनिया में इतनी विनाशकारी सामग्री इकट्ठी हो चुकी है कि उससे सारी पृथ्वी को अनेक बार नष्ट किया जा सकता है। प्रदूषण की समस्या अलग फैली हुई है। नित नए असाध्य रोग पैदा होते जा रहे हैं, जो वैज्ञानिक उपकरणों के अंधाधुंध प्रयोग के दुष्परिणाम हैं। वैज्ञानिक प्रगति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मानव-मन पर भी हुआ है। पहले जब मानव निष्कपट था, निस्वार्थ था, भोला था और बेपरवाह था, वह अब छली, स्वार्थी, धुर्त, भौतिकवादी तथा तनावग्रस्त हो गया है। नैतिक मूल्य नष्ट हो गए हैं।
निष्कर्ष -
विज्ञान तो एक शक्ति है जिसका उपयोग कल्याण के लिए भी हो सकता है और संहार के लिए भी। वास्तव में विज्ञान को वरदान या अभिशाप बनानेवाला मनुष्य है। उसे वरदान या अभिशाप बनाना मनुष्य की विचारधारा पर आधारित है। आज के राजनीतिज्ञों को अपनी स्वार्थ भावना का परित्याग कर देना चाहिए, तभी विज्ञान के वरदानों का उपयोग मानवजाति को पूर्णतः सुखी एवं समृद्ध करने में हो पायेगा, अन्यथा नहीं। हमें याद रखनी चाहिए - 'विज्ञान अच्छा सेवक है लेकिन बुरा हथियार।'
arjun4144:
le yaar mark kr jldi
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