Hindi, asked by pawansinghpatnacity, 6 months ago

(vii) अंग्रेज संथालों का शोषण किस तरह किया करते थे?​

Answers

Answered by siddhantsinghbeast17
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Answer:

भारत के इतिहास की बात की जाए तो भारत के इतिहास में समय-समय पर हुए विभिन्न विद्रोह, युद्ध व् आंदोलनो के इतिहास को पढ़े बिना भारत के इतिहास की कल्पना भी नहीं की जा सकती. भारत के इतिहास में हजारों ऐसी घटनाएं हैं जो विद्रोह युद्ध या आंदोलन से जुड़ी हुई हैं.अगर भारत के इतिहास का सही मायने में आकलन किया जाए तो भारत के इतिहास में हुए विभिन्न युद्ध, विद्रोह भारत के पराक्रम को दर्शाते हैं.

जी हां दोस्तों आज का हमारा लेख भारत के इतिहास में हुए विभिन्न विद्रोह में से एक विद्रोह जिसे संथाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है से संबंधित है. हमारे इस लेख में संथाल विद्रोह के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है.

इस लेख को पढ़ कर आप संथाल विद्रोह से जुडी छोटी से छोटी जानकारी हासिल कर पाएंगे. जैसे संथाल क्या है, संथाल विद्रोह क्यों हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ इत्यादि. तो चलिए जानते है

Answered by hemantsuts012
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Answer:

संथाल समुदाय झारखंड-बंगाल सीमावर्ती क्षेत्रों - मानभूम, बड़ाभूम, सिंहभूम, मिदनापुर, हजारीबाग, बांकुरा क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में रहता था। कोलों की तरह, संथालों ने भी लगभग उन्हीं कारणों से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। इस विद्रोह को भी अंग्रेजी सेना ने कुचल दिया था।

Explanation:

संथालों का अस्तित्व कृषि और वन संसाधनों पर निर्भर था। स्थायी बंदोबस्त की स्थापना के बाद, संथालों ने अपनी जमीन भी खो दी। इसलिए वह अपना इलाका छोड़कर राजमहल की पहाड़ियों में रहने लगा। उन्होंने यहां की जमीन को खेती के लिए उपयुक्त बनाया, जंगलों को काटा और मकान बनवाए। संथालों के इस क्षेत्र को "दमनिकोह" के नाम से जाना जाने लगा। सरकार की नजर दमनीकोह पर भी पड़ी और वहां भी लगान वसूलने आ गए। फिर वहां जमींदारी स्थापित की गई। अब उस क्षेत्र में जमींदारों, साहूकारों, साहूकारों और सरकारी कर्मचारियों का प्रभुत्व बढ़ने लगा। गरीब संथालों पर लगान की राशि इतनी रखी गई कि वे लगान के बोझ तले बिखर गए। दमन का तांडव ऐसा था कि महाजन द्वारा दिए गए ऋण पर 50 से 500% ब्याज वसूल किया जाता था।

वे किराया नहीं दे पा रहे थे। इन सब कारणों से संथाल के किसानों की गरीबी बढ़ती गई। कर्ज नहीं चुकाने के कारण उनके खेत, मवेशी छीन लिए गए। संथालों को जमींदारों और साहूकारों का गुलाम बनना पड़ा। संथालों को कहीं से न्याय नहीं मिलने वाला था। सरकारी कर्मचारी, पुलिस, थानेदार आदि साहूकारों का पक्ष लेते थे। संथालों के हितों की तो बात ही नहीं, संथालों की संपत्ति लूटी गई, आदिवासी महिलाओं की इज्जत लूटी गई।

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