Hindi, asked by satya263, 9 hours ago

vijay dashmi pe nibandh likhiye
HAPPY DUSHERA

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Answered by SumellikaPremika
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विजयादशमी पर निबंध |Essay on Vijaya Dashami in Hindi!

हमारे पर्व हमारी संस्कृति व सभ्यता की पहचान हैं । देश में वर्ष भर में अनेकों त्योहार होते हैं और इन सभी त्योहारों को मनाने की एक अपनी ही परंपरा व विधि है ।

सभी त्योहार मानवता के लिए कोई न कोई संदेश लेकर आते हैं । हमारे त्योहार लोगों में परस्पर प्रेम व सद्‌भावना का संदेश देते हैं तथा जीवन में नवीन खुशियों व उल्लास का संचार करते हैं । होली, रक्षाबंधन, दीपावली व विजयादशमी हिंदुओं के प्रमुख त्योहार हैं ।

विजयादशमी अथवा दशहरा पर्व का हिंदुओं के लिए विशेष महत्व है । प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाने वाले यह त्योहार जनमानस में खुशी, उत्साह व नवीनता का संचार करता है । यह पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन अयोध्या के राजा राम ने लंका के आततायी राक्षस राजा रावण का वध किया था । तब से लोग भगवान राम की इस विजय स्मृति को विजयादशमी के पर्व के रूप में मनाते चले आ रहे हैं ।

विजयादशमी का यह पर्व अच्छाई की बुराई पर, सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है । यह त्योहार हमें संदेश देता है कि बुरा व्यक्ति चाहे कितना ही बलवान व प्रभावशाली क्यों न हो उसका अंत सुनिश्चित है । मृत्यु पर भी विजय पाने वाले रावण का अंत कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अधर्म पर धर्म की विजय दिलाई ।

विजयादशमी के पर्व को मनाने के लिए उक्त मान्यता के अतिरिक्त भी अनेक मत प्रचलित हैं । बंगाल में उलर-पूर्वी भारत की मान्यताओं से भिन्न यह त्योहार महाशक्तिशालिनी माँ दुर्गा को सम्मान व उन्हें श्रद्‌धासुमन अर्पित करने के लिए मनाया जाता है । इस अवसर पर व्रत, पूजा, उपासना, दुर्गा-पाठ आदि के कार्यक्रम होते हैं । इसके अतिरिक्त जगह-जगह पर माँ की सुंदर-सुसज्जित झाँकियाँ निकाली जाती हैं ।

विजयादशमी से नौ दिन पूर्व से ही, अर्थात् आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से ही माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर इनकी पूजा आरंभ हो जाती है । दुर्गा सप्तशती के श्लोकों का सस्वर पाठ वातावरण में गूँजने लगता है । कुछ लोग अपने पंडित-पुरोहितों से यह पाठ करवाते हैं तथा भक्तिभाव से आदि शक्ति दुर्गा का महात्म्य श्रवण करते हैं ।

यह पाठ घर पर स्नानादि कर श्रद्‌धापूर्वक करने का पुण्य अत्यधिक है, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है । दस महाविद्‌याओं-काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका, इनका स्मरण व ध्यान हमारे समस्त पापों व रुग्णताओं का नाश कर देता है तथा परम सिद्‌धि प्राप्त होती है ।”सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्रम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते ।”

विजयादशमी के त्योहार से कई दिन पूर्व ही इसकी तैयारियाँ प्रारंभ हो जाती हैं । देश भर में जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है जिसमें राम के जीवन प्रसंगों का जीवंत प्रदर्शन होता है । लोग बड़ी ही श्रद्‌धा व विश्वास से रामलीला को देखते हैं । इस प्रकार सभी को उनके महान आदर्शों व महान चरित्र की अद्‌भुत झाँकी के दर्शन रामलीला के माध्यम से होते हैं ।

देश की राजधानी दिल्ली में भी इन रामलीलाओं का बड़ा ही भव्य आयोजन होता है । बच्चे, बूढ़े और जवान सभी में रामलीला के प्रति विशेष आकर्षण व उत्साह होता है । विशेष रूप से बच्चे इसे देखकर प्रफुल्लित होते हैं तथा साथ ही साथ भगवान राम के महान चरित्र से उन्हें उत्तम चरित्र निर्माण की प्रेरणा मिलती है ।

यह त्योहार खुशी, उल्लास व नवचेतना का त्योहार है । इस दिन सड़कों, बाजारों व दुकानों पर विशेष चहल-पहल होती है । अमीर-गरीब सभी इस त्योहार में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं । सभी नवीन व स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं । देश भर में मिठाई व पटाखों की दुकानों में विशेष चहल-पहल होती है । किसानों के लिए भी यह अत्यंत खुशी का अवसर होता है । क्योंकि इस समय तक खरीफ की फसल काटकर वे इसका आनंद उठाते हैं ।

गाँव-गाँव, नगर-नगर में राम की झांकियाँ निकाली जाती हैं जिसे देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है । अनेक स्थानों पर लोग एक दूसरे के घरों में जाते हैं व परस्पर गले मिलते हैं । ग्रामीण भारत में तथा छोटे-छोटे शहरों में व्रत, उपवास, आराधना का विशेष महत्व है । गाँवों में दशहरा के अवसर पर छोटे-बड़े मेले लोगों के परस्पर मिलने-जुलने तथा अपनी संस्कृति को प्रदर्शित करने का सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं ।विजयादशमी का पर्व हमारी भारतीय संस्कृति को और भी अधिक गौरवान्वित करता है व इसे महान बनाता है । यह त्योहार धार्मिक आस्था व विश्वास की शक्ति को दर्शाता है । अधर्म पर धर्म की, असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक यह त्योहार संपूर्ण विश्व को धर्म और सत्य के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा देता है । मर्यादा पुरुषोत्तम राम का महान चरित्र जनमानस को जीवन के महान नैतिक मूल्यों की अवधारणा हेतु प्रेरित करता है ।

यह त्योहार मनुष्य को प्रेम, भाईचारा व मानवता का संदेश देता है । आज के भौतिकवादी युग में जहाँ मनुष्यों में असंतोष की प्रवृत्ति व स्वार्थ लोलुपता बढ़ती ही जा रही है, इन त्योहारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है । अत: यह हम सभी का नैतिक दायित्व है कि हम अपनी इस गौरवशाली परंपरा को कायम रखें ।

Answered by Anonymous
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दशहरा या विजयदशमी या आयुध-पूजा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयदशमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति के वीरता का पूजक, शौर्य का उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है।

भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है।

प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा हमें देता है।

दशहरा या दसेरा शब्द 'दश'(दस) एवं 'अहन्‌‌' से बना है। दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनाएं की गई हैं। कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है।

जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का ठिकाना हमें नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। तो कुछ लोगों के मत के अनुसार यह रणयात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त हो जाते हैं, नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि सहेज कर में रखे जाने वाले हो जाते हैं।

इस उत्सव का सम्बन्ध नवरात्रि से भी है क्योंकि नवरात्रि के उपरांत ही यह उत्सव होता है और इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख मिलता है।

दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था। रावण भगवान राम की पत्नी देवी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। राम की विजय के प्रतीक स्वरूप इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है।

दशहरा पर्व को मनाने के लिए जगह-जगह बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। यहां लोग अपने परिवार, दोस्तों के साथ आते हैं और खुले आसमान के नीचे मेले का पूरा आनंद लेते हैं। मेले में तरह-तरह की वस्तुएं, चूड़ियों से लेकर खिलौने और कपड़े बेचे जाते हैं। इसके साथ ही मेले में व्यंजनों की भी भरमार रहती है।

इस समय रामलीला का भी आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा, शस्त्र पूजन, हर्ष, उल्लास तथा विजय का पर्व है। रामलीला में जगह-जगह रावण वध का प्रदर्शन होता है।

इस दिन क्षत्रियों के यहां शस्त्र की पूजा होती है। इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं जो पटाखों से भरे होते हैं। पुतले में आग लगते ही वह धू-धू कर जलने लगता है और इनमें लगे पटाखे फटने लगते हैं और उससे उसका अंत हो जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

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