Vinoda bharadvaja ke dvara likhita barish kavita ka saransha
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यह कविता कवि विनोद भारद्वाज के कविता संग्रह ‘होशियारपुर’ से ली गई है. कविता संग्रह वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था.
कई लोगों को बचाना है अपने को
इन तीन वेश्याओं से
पर हिम्मत देखिए वे पूछती हैं एक पढ़े-लिखे
लड़के से
भैया, कोटला जब आए तो बताना
मिनी बस का मनचला कंडक्टर
लोगों को धक्के दे-दे कर भीतर भरते चला जा
रहा है
तीन वेश्याओं का उसे क्या डर है?
बेरहमी से खींचता है एक वेश्या के हाथ से
वह पांच का मुड़ा-तुड़ा नोट
कंडक्टर का अंदाज़ पसंद नहीं आया उस वेश्या
को
उसने मुंह बनाया
फिर तीसरी बार वार्निंग दी उस लफंगे को
जो बार-बार सटे चला जा रहा था
अचानक उसे सीट मिल गयी
एक भव्य किस्म की बुढ़िया
एक स्टॉप पहले ही उतर गई थी
बारिश, सिनेमा के टिकट और घिरे आसमान ने
एक दिव्य क़िस्म के मूड और मस्ती में ला दिया है
इन तीन वेश्याओं को
एक वेश्या बैठ जाती है
दूसरी की गोद में
वह जीभ निकालती है
एक बच्चे को देखकर
एक पढ़े-लिखे अधेड़ ने उन लड़कियों से
खूब शराफत से बात की
वेश्याओं से बात करने का उसका यह पहला
मौक़ा था
वह शायद अपना स्टॉप भी भूल गया
इतनी झमाझम बारिश में
आख़िर उतरा कैसे जाए
एक चश्मे वाला यूनिवर्सिटी स्टूडेंट
उन वेश्याओं के इस तरह से सटने का बुरा नहीं
मान रहा है
अपनी छतरी, झोले और किताबों को
संभालता हुआ
इस सफ़र के लिए
वह ईश्वर को धन्यवाद दे रहा है|
तीन वेश्याएं उतर गयीं
तेज़ बारिश में
सब लोगों ने उन्हें दूर तक सड़क पार करते
देखा
‘अबे चल ओय’ कंडक्टर बरसा ड्राइवर पर
बस में सन्नाटा था
वे तीन वेश्याएं थीं-
पर भला वे वेश्याएं कैसे थीं जब किसी ने उन्हें
कोठे से उतरते नहीं देखा
यह भी तो हो सकता है कि वे
बारिश के साथ बादलों से उतरी हों
अप्सराएं हों.