vir ras aur bayanak ras ke udharan dijiye
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VIR RAS ~
वीर रस हिन्दी भाषा में रस का एक प्रकार है। जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है।
उदाहरण
मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे
यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे
है और कि तो बात क्या, गर्व मैं करता नहीं
मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं
BHANAYAK RAS~
भयानक रस नौ रसों में से एक रस है। भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ अथवा ‘सम्पूर्ण इन्द्रियों का विक्षोभ’ भयानक रस है। भयोत्पादक वस्तुओं को देखने या सुनने से अथवा शत्रु इत्यादि के विद्रोहपूर्ण आचरण की स्थिति में भयानक रस उद्भुत होता है। हिन्दी के आचार्य सोमनाथ ने ‘रसपीयूषनिधि’ में भयानक रस की निम्न परिभाषा दी है-
‘सुनि कवित्त में व्यंगि भय जब ही परगट होय। तहीं भयानक रस बरनि कहै सबै कवि लोय’।
उदाहरण-
1.एक और अजगरहि लखी एक और मृगराय.
2.बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाए. (भयानक उदाहरण) इसके शेर और अजगर इसके आलंबन है.
3. “मेरे सामने ही कातिल ने उस व्यक्ति की गर्दन पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया । उसका सर धड़ से अलग हो गया और गर्दन से खून के फव्वारे निकलने लगे ।”
4. “डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से,
छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से ।
5.हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी,
6.भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी,
7.इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे,
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे ।।”
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