virus detail in hindi
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विषाणु बड़े सूक्ष्म जीव हैं, जिनमें से विशेष विषाणुओं से विशेष संक्रामक
रोग उत्पन्न होते हैं। प्राय: ऐसे 50 रोग मनुष्य को होते हैं जिनका कारण
विषाणु माना जाता है। विषाणु की प्रकृति का अभी पूरा ज्ञान नहीं है, लेकिन
कुछ बातें ठीक ठीक ज्ञात हैं। विषाणु को इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron
microscope) द्वारा देख सकते हैं। जीवित कोशिका की उपस्थिति तथा अनुकूल
वातावरण में विषाणु बढ़ने लगते हैं पर जीवित कोशिका की अनुपस्थिति में
विषाणु का बढ़ना कभी नहीं पाया गया है। परिमाणु, बनावट की भिन्नता तथा
स्थायित्व (stability) के अनुसार विषाणुओं की कई जातियाँ हैं। विषाणु जीव
हैं या नहीं इसपर भी पृथक् मत है। विषाणुओं के संक्रमण द्वारा कोशिका के
उपापचय (metabolism) में विकृति उत्पन्न हो जाती है, जो भिन्न भिन्न
विषाणुओं से विभिन्न प्रकार की होती है। इससे रोगलक्षण भी पृथक् पृथक्
होते हैं। विषाणु संक्रमण के बाद मनुष्य में अधिकतर प्रतिरक्षा (immunity)
उत्पन्न हो जाती है। अभी विषाणुओं के संक्रमण की चिकित्सा की विशेष
(specific) ओषधि नहीं मिली है। साधारण ज़ुकाम (common cold), डेंग्यू
(dengue), हर्पीज (herpes), संक्रामी यकृतशोथ (infective hepatitis),
मसूरिका (measles) कनफेड़ (mumps), चेचक (small pox), लिफोग्रैनुलोमा
विनेरियम (lympho-granuloma venareum), जलसंक्रास (hydrophobia), नेत्र में
रोहे (trachoma) आदि रोग विषाणुओं के संक्रमण द्वारा होते हैं।
हरारत, सिरदर्द, ज्वर, त्वचा पर उदभेदन, ग्रंथि उभड़ना, सरेसाम आदि विषाणु संक्रमण के विविध तथा पृथक् लक्षण होते हैं। चिकित्सा में अधिकतर रोगलक्षण का उपचार मुख्य है। रोगी की शुश्रुषा, तरल तथा पौष्टिक भोजन और परिचर्या आवश्यक है। (उमा शंकर प्रसाद)
हरारत, सिरदर्द, ज्वर, त्वचा पर उदभेदन, ग्रंथि उभड़ना, सरेसाम आदि विषाणु संक्रमण के विविध तथा पृथक् लक्षण होते हैं। चिकित्सा में अधिकतर रोगलक्षण का उपचार मुख्य है। रोगी की शुश्रुषा, तरल तथा पौष्टिक भोजन और परिचर्या आवश्यक है। (उमा शंकर प्रसाद)
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