Hindi, asked by ankitaprasad89, 2 days ago

Vraksharopad par anuched

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Answered by N182514
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वृक्षारोपण का सामान्य एवं विशेष सभी का अर्थ है- वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना । जिससे प्रकृति का सन्तुलन बना रहे । वन-सम्पदा के रूप में प्रकृति से हमें जो कुछ भी प्राप्त होता आ रहा है, वह नियमपूर्वक हमेशा आगे भी प्राप्त होता रहे ताकि हमारे समाज-जीवन का सन्तुलन बना रहे ।

मानव सृष्टि का सर्वश्रेष्ट प्राणी है । उसका जीवन सुखी, समृद्ध एवं सन्तुलित रह सके,सांस्कृतिक, सामाजिक एवं व्यापक मानवीय दृष्टि से इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है । इस कारण भी वृक्षारोपण करना एक प्रकार का सहज सांस्कृतिक दायित्व स्वीकार किया गया है ।

वृक्षारोपण मानव समाज का सास्कृतिक दायित्व है । मानव सभ्यता का उदय और आरम्भिक आश्रय प्रकृति यानि वन-वृक्ष ही रहे है । उसकी सभ्यता-संस्कृति के आरम्भिक विकास का पहला चरण भी वन-वृक्षो की सघन छाया में ही उठाया गया ।

साहित्य-कला का सृजन और विकास ही वनालियों की सघन छाया और प्रकृति की गोद में ही सम्भव हो सका, यह एक पुरातत्व एवं इतिहास सिद्ध बात है । आरम्भ में मनुष्य वनो में, वृक्षों पर या उनसे ढकी कन्दराओं में ही रहा करता था ।

वृक्षों से प्राप्त फल-फूल आदि खाकर, या उसकी डालियों को हथियार की तरह प्रयोग में लाकर उनसे शिकार करके अपना पेट भरा करता था, बाद में बचे-कुचे फल और उनकी गुठलियों को दुबारा उगते देखकर ही मानव ने खेती-बाड़ी करने की प्रेरणा और सीख प्राप्त की ।

वृक्षों की छाल का ही सदियों तक आदि मानव वरत्र रूप मे प्रयोग करता रहा, यद्यपि बाद में वन में रहकर तपस्या करने वालों, वनवासिया के लिए ही वे रह गए थे । आरम्भिक वैदिक ऋचाओं की रचना या दर्शन में पथ लिखने के लिए कागज के बजाय जिस सामग्री क्य प्रयोग किया गया वे भोजपत्र भी विशेष वृक्षों के पत्ते थे । संस्कृति की धरोहर माने जाने वाले कई ग्रन्थों की भोजपत्रो पर लिखी गई पाण्डुलिपियाँ आज भी कहीं-कहीं उपलब्ध हैं ।

संस्कृति के विकास की दिशा मे कदम बढ़ाते हुए गुफाओं से बाहर निकल और वृक्षों के नीचे उतर कर जब झोपडियों का निर्माण आरम्भ किया, तब तो वृक्षों की शाखाएं-पत्ते सहायक सामग्री बने ही, बाद में मकानों-भवनों की परिकल्पना साकार करने के लिए भी वृक्षों की लकडी का भरपूर प्रयोग किया गया ।

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