Hindi, asked by vishvasrathod7981, 8 months ago

vrudhashram ke bare mein ek anuchchhed likhiye​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

पहले के समय में हर घर में बड़े बुजुर्गों को बहुत ही सम्मान दिया जाता था। उनसे हर बात पर परामर्श लिया जाता था और उन्हें घर में भगवान के आशीर्वाद के रूप में समझा जाता था। लेकिन बदलते समय के साथ भारत में बहुत सो सामाजिक बदलाव आए हैं। महिलाओं ने भी बाहर जाकर नौकरी करना शुरू कर दिया है। घर में वृद्धों के लिए उनके पास समय ही नहीं होता है। वह बुजुर्गों को घृणा की नजर से देखते हैं और उन्हें बेकार समझते हैं। बुजुर्गों को ऐसे में बहुत बुरा लगता है और तभी वृदाश्रम बनाए जाते हैं ताकि वह वहाँ जाकर स्वतंत्र रूप से अपनी जिंदगी व्यतीत कर सकें और उन्हें घृणा की नजर से न देखा जाए।

वृदाश्रम में बुजुर्गों को सभी सुविधाएँ दी जानी चाहिए। वहाँ पर सफाई होनी चाहिए और वह राज्य के पैसे से चलाया जाना चाहिए। वृदाश्रम में बुजुर्ग लोग अपनी उमर के लोगों के साथ बैठ कर बातें कर सकते हैं, उनके साथ खेल सकते है और अपने सुख दुख साझे कर सकते हैं। वृदाश्रम हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं इसे पश्चिमी संस्कृति से अपनाया गया है। वैसे तो हमें घर पर ही बुजुर्गों को इतना अच्छा माहौल देना चाहिए कि उन्हें शांतिपूर्ण जीवन के लिए वृदाश्रम न जाना पड़े।

Answered by MohdAnas11
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हम सभी एक परिवार में रहते हैं परिवार में माता-पिता,दादा दादी होते हैं परिवार हमारे जीवन में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है हम अगर किसी भी मुसीबत में फंसते हैं तो परिवार वाले हमारा सहयोग करते हैं हर विकट परिस्थिति में हमारा साथ देते हैं हम भी उनका साथ देते हैं.परिवार इस देश,इस समाज में एक अहम भूमिका निभाता है.हमारे परिवार में बुजुर्ग लोग भी होते हैं जैसे कि दादा दादी, माता पिता.हमारे समाज में ऐसे लोग भी होते है जो माता पिता का सम्मान नहीं करते.

माता पिता अपने बच्चों के लिए मेहनत करके पैसा कमाते हैं उनके लिए घर बनाते हैं और उनके भविष्य के लिए पैसा एकत्रित करते हैं यहां तक की अपने बच्चों के लिए अपनी संपत्ति भी दे देते हैं लेकिन बदलते जमाने के साथ आज ज्यादातर बच्चे अपने बड़े बुजुर्गों,मां बाप का ख्याल नहीं रखते.इस तरह की बदलती उनकी सोच हमारे संस्कार के विपरीत है और हमें जीवन में एक बुरी परिस्थिति में लाकर रख देते हैं.

हमारे देश में जहां माता-पिता को भगवान भी कहते हैं सबसे पहले माता पिता ही भगवान होते हैं उसके बाद किसी भगवान का नंबर आता है लेकिन बदलते इस युग में कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो बुजुर्गों की सेवा नहीं करते और बुजुर्गों को अपने बुढ़ापे में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं जिनको अपने बच्चों से अलग रहना पड़ता है घर में ही उन्हें अलग रहकर खाना बनाना पड़ता है उनके बच्चे उनकी देखरेख नहीं करते.आज के इस बदलते जमाने के साथ महंगाई के जमाने में पुरुष और स्त्री दोनों बाहर का काम करने लगे हैं इसी वजह से बहुत से बुजुर्ग मां-बाप जो अकेले घर में रहते हैं और नौकरों की तरह उन्हें घर का सारा काम आज करना पड़ता है क्योंकि बेटा बहु तो सुबह से शाम तक नौकरी करते हैं हमें बुजुर्गों की स्थिति के बारे में सोचना चाहिए.

आज हमारे देश में बुजुर्गों की मदद के लिए वृद्धाश्रम भी बने हैं जिनमें केवल बुजुर्ग व्यक्ति ही रहते हैं और अपने जीवन का निर्वाह करके खुशी खुशी अपने जीवन को व्यतीत करते हैं कुछ बच्चे स्वेच्छा से अपने मां-बाप को वृद्धा आश्रम में छोड़ आते हैं जिन बच्चों को उनकी देखभाल करना चाहिए उनके वजाये वृद्धा आश्रम वाले उनकी देखभाल करते हैं.हम हमारे संस्कारों के खिलाफ आज पैसा कमाने के लिए भागते हैं,संपत्ति एकत्रित करने के लिए इस दुनिया में भागते है लेकिन ऐसे लोग नहीं समझ पाते की की उनकी असली संपत्ति तो बुजुर्ग ही होते है.

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