Environmental Sciences, asked by monikagupta70186, 2 months ago

Vyakti ke jivan dharma nd rashtra ki bhumika pe essay

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Answered by jij74468
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Answered by sheelathakur027
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धर्म शब्द का वास्तविक अर्थ है वे नियम जिन पर चलने से समाज में नैतिकता व मानवता बनी रहे। धर्म के मूल स्तंभ हैं- दान, दया, तप, सत्यता व शुचिता तथा शौच व क्षमा इत्यादि। धर्म के नियमों पर चलने के उपरांत मानव हृदय निर्मल हो जाता है तथा इस स्थिति में करुणा जन्म लेती है। करुणा के कारण दया व क्षमा का भाव जाग्रत होता है। इन दोनों गुणों के कारण मानव, मानव से प्रेम करने लगता है व दूसरों को दुख से निकालने की कोशिश करने लगता है। आज के समाज में चारों तरफ फैले हुए नैतिक पतन ने हमारे धर्म का असली अर्थ भुला दिया है। पहले समाज में अग्रणी लोगों में दया व दान की भावना थी। इस कारण उस समय शिक्षा व चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में ज्यादातर स्कूल, कॉलेज व चिकित्सालय दान पर आधारित संस्थाएं चलती थीं। उस समय इन संस्थानों में पैसा तथा रुतबा का कोई स्थान एक आम नागरिक को इनकी सुविधा प्राप्त करने में बीच में नहीं आता था, परंतु आज मानवता की सेवा के ये प्रमुख केंद्र दया, दान व करुणा की भावना से कोसों दूर चले गए हैं तथा आज इनकी मूलभूत सेवाओं में धन कमाने की भावना ने दान व दया को दूर कर दिया है। दया व क्षमा का वर्तमान समय में सर्वथा अभाव हो गया है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में राक्षसों का वर्णन आया है। भगवान श्रीराम ने अरण्यकांड में राक्षसों की कुछ पहचान बताई है, जिनमें प्रमुख हैं लालच और हिंसा के साथ-साथ दूसरों के दुख में खुश होना, दूसरों की बुराइयों को 100 नेत्रों से देखना, दया व करुणा का सर्वथा अभाव इत्यादि।

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