Vyam ke labh essay in hindi
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व्ययाम से अभिप्राय है अपने तन मन को स्वस्थ और निरोग बनाये रखने के लिए किया गया परिश्रमपूर्ण कार्य या प्रयास। सर्वप्रसिद्ध युक्ति पहला सुख निरोगी काया के अनुसार शरीर का स्वस्थ व निरोग रहना ही सबसे बड़ा सुख है। अस्वस्थ व रोगी व्यक्ति संसार के सुखों का भोग कदापि नहीं कर सकता है। स्वस्थ शरीर के लिए व्यायाम अत्यंत आवश्यक है। जो व्यक्ति नित्यप्रति व्ययाम करते है। वे सदैव स्वस्थ व सुखी रहते है।
किसी ने कहा है ‘शरीर माधम खलु धर्म साधनम;– अर्थात शरीर को धर्म साधना का एक मात्र माध्यम स्वीकार किया गया है। शरीर ही कर्म का साधक है। ‘पहला शुख निरोगी काया’– यह कथन अक्षरश सत्य है। क्योंकि जिस व्यक्ति का शरीर रोगी है। उसका जीवन ही निर्रथक है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष जीवन के इन लक्ष्यों को स्वस्थ शरीर द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
व्ययाम शरीर को स्वस्थ, हस्तपुठ, सुंदर सुडोल तो बनाता ही है अपितु मन, मस्तिष्क और आत्मा के उचित विकास में भी सहायक होता है। मस्तिष्क से काम करने वालो के लिए प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में घूमना, सूर्य नमस्कार करना आदि लाभकारी व्यायाम है। प्रातःकाल खुले वातावरण में घूमना बिना मूल्य का लाभकारी व्ययाम है। इससे हमें प्रातःकाल सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ती है तथा हमारी दिन चर्या नियमित रूप से चलती है। महात्मा गांधी जी ने भी अपनी आत्मकथा में प्रातः और सायंकाल में भृमण करना एक अच्छा व्ययाम बताया है।
अच्छा स्वास्थ्य एक महावरदान है। अच्छे स्वास्थ्य से ही अनेक प्रकार की सुख सुविधाये प्राप्त की जा सकती है। जो व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य तथा स्वस्थ शरीर के महत्व को नकारता है तथा ईशवर के इस वरदान का निरादर करता है, वह अपना ही नही समाज तथा ईशवर के इस वरदान का निरादर करता है, वह अपना ही नही, समाज तथा राष्ट्र को भी अहित करता है। स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास हो सकता है। जिस व्यक्ति का शरीर ही स्वस्थ नही, फिर उसका मस्तिष्क भला कैसे स्वस्थ रह सकता है। स्वस्थ मस्तिष्क के अभाव में व्यक्ति कितना पंगु है। इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।
स्वस्थ व्यक्ति निश्चित रूप से ख़ुश रहता हैं और जो व्यक्ति ख़ुश नही हैं वह निश्चित ही शारीरिक या मानसिक रूप से बीमार हैं