we need to write a essay about our friend in hindi
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मेरा नाम अजय है ,और मैं कक्षा 8 का विद्यार्थी हूं, और मैं जय नारायण सरस्वती विद्या मंदिर बरेली में पढ़ता हूं. मेरा सबसे प्रिय मित्र आशीष है वह हमारे पास रहने वाली हमारे पड़ोसी अंकल शर्मा जी का बेटा है .शर्मा जी और मेरे पिताजी एक ही कंपनी में 20 सालों से जॉब कर रहे हैं .मेरी और आशीष की दोस्ती लगभग 7 साल पुरानी है. वह मेरा प्रिय मित्र My best friend है. वह भी मेरे साथ मेरे विद्यालय और मेरी कक्षा में पढ़ता है.
हम दोनों मित्र साथ साथ विद्यालय जाती हैं एक दूसरे की पढ़ाई में मदद करते हैं आशीष बहुत ही सरल एवं विनम्र स्वभाव का छात्र है उसके बोलने का तरीका बहुत ही मधुर है जो हर किसी का आसन से हृदय जीत सकता है यही कारण है कि वह मेरा परम मित्र है .
आशीष की और मेरी आदतें भी मिलती-जुलती है हम दोनों को क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है हम रोज शाम को दोनों स्टेडियम में क्रिकेट खेलने जाते हैं. वह हमारी कक्षा में हमेशा प्रथम आता है आशीष काफी होनहार और होशियार लड़का है. भाई अपने माता पिता की सारी बातें मानता है. आशीष हर उठ कर अपने माता पिता की चरण स्पर्श करता है.
शारीरिक तौर पर भी वह काफी मजबूत है वह रोज सुबह उठकर व्यायाम करता है. मैं भी उसे अपने हृदय से पसंद करता हूं और उसके बारे में एक भी बुरा शब्द नहीं सुन सकता हूं. यदि कोई उसके बारे में कुछ भी गलत कहता है तो मैं उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता हूं.
हमें अपने जीवन काल में कम से कम एक परममित्र की आवश्यकता जरूर होती है, इसलिए हमें एक ऐसा मित्र बनाना चाहिए जिससे हम दिल खोल कर बातें कर सकें. जो हमारी हमेशा मदद करने को तैयार हो. कहा जाता है कि सच्चा मित्र भगवान का तोहफा होता है. मुझे मेरे और मेरे मित्र की दोस्ती पर गर्व है.
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For example: अनुराग मेरा सबसे प्रिय मित्र है। उसका घर मेरे पास ही है। मैं प्रतिदिन उसके घर जाता हूं और उसके साथ खेलता और पढ़ता हूं। उसके पिताजी पेशे से इंजीनियर हैं। अंकल और मेरे परिवार के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध हैं। मेरे और अनुराग के परिजन सभी एक-दूसरे को जानते हैं।
हमारी मित्रता लगभग 8 वर्ष पुरानी है। हमारे विचार लगभग समान हैं। हमारी मित्रता में स्वार्थ की भावना दूर-दूर तक नहीं है। हम दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते हैं।
अनुराग बहुत नम्र लड़का है। उसका उत्साह और आत्मविश्वास गजब का है। उसकी वाणी से शालीनता और नम्रता साफ झलकती है। उसे मैंने किसी के साथ भी अभद्र स्वर में बातें करते नहीं देखा। खेल में हारकर भी वह उदास और दुखी नहीं होता है। दूसरी तरफ मैं थोड़ी सी हार भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था। जरा-जरा सी बात में मुझे गुस्सा आ जाता था। उसे देखकर ही मेरी इस आदत में सुधार हुआ है।