What are 15 lines on water purification system by fine sand, coarse sand, and gravel in Sanskrit and translate in Hindi or English?
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Answer:
सैंड फिल्टर लोगों की स्मृति में तकनीकी विकास ने इतनी गहरी पैठ जमा ली है कि उन्होंने सदियों तक साथ देने वाले परम्परागत तौर-तरीकों से मुँह मोड़ लिया है। उदाहरण के तौर पर सामान्य जल को पेयजल के रूप में परिष्कृत करने के लिये आरओ का प्रयोग इतना बढ़ गया है कि लोगों ने स्लो सैंड फिल्टर जैसी परम्परागत तकनीक को एकदम भूला दिया।
प्रदूषित जल के इस्तेमाल से पैदा होने वाली बीमारियों ने अपना दायरा इतना बढ़ा लिया है कि शायद ही देश का कोई कोना इनकी गिरफ्त से बचा हो। उत्तराखण्ड के प्राकृतिक जलस्रोत भी प्रदूषण की गिरफ्त में हैं। अतः प्रदूषित जल के इस्तेमाल से पैदा होने वाली बीमारियों से लोगों को बचाने के लिये स्लो सैंड फ़िल्टर एक कारगर तरीका हो सकता है।
पहाड़ों की रानी मसूरी में लगभग 50 हजार लोगों को शुद्ध पेयजल, स्लो सैंड फिल्टर के माध्यम से उपलब्ध हो रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि शुद्ध पेयजल वही है जिसमें पर्याप्त मात्रा में मिनरल उपलब्ध होते हैं। वे यह भी बताते हैं कि कृत्रिम फिल्टर पानी में उपस्थित मिनरल्स को बाहर निकाल देते हैं। इस तरह स्लो सैंड फिल्टर का इस्तेमाल आज भी प्रासांगिक है क्योंकि इससे मिले पानी में मिनरल्स की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में होती है।
पानी को साफ करने के लिये इस परम्परागत तकनीक का इस्तेमाल उत्तराखण्ड के कई हिस्सों में हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि हिमकॉन संस्था ने अर्घ्यम के सहयोग से टिहरी के एक दर्जन गाँवों में स्लो सैंड फिल्टर टैंक का निर्माण कराया है। एक टैंक से प्रतिदिन 40 से 80 परिवारों को शुद्ध जल उपलब्ध कराया जा रहा है। इन गाँवों में टिहरी के चम्बा ब्लॉक के चोपड़ियाली सहित लगभग दर्जन भर गाँव ऐसे थे जहाँ गर्मी में हैजा जैसी संक्रामक बीमारी से लोगों की जान तक चली जाती थी।
इस समस्या से छुटकारा पाने के उद्देश्य से जब ग्रामीणों ने हिमकॉन संस्था के सहयोग से पानी के स्रोतों की जाँच करवाई तो पता चला कि सभी जलस्रोत प्रदूषित हो गए हैं। यही कारण था कि ग्रामीण भयंकर बीमारी की चपेट में घिरे रहते थे।
पानी के स्रोतों के प्रदूषित होने का कारण था गाँवों के सिरहाने पर रानी चौरी स्थित गोविन्द वल्लभ पन्त कृषि एवं वानिकी विश्वविद्यालय का परिसर। इस विश्वविद्यालय से निकलने वाला सीवर जलस्रोतों को प्रभावित कर रहा था। अतः जल को बिना साफ किये इस्तेमाल में लाना मौत को दावत देना था। स्लो सैंड फिल्टर ही इस समस्या के समाधान का एकमात्र उपाय था। आज सभी ग्रामीण शुद्ध पेयजल प्राप्त कर रहे हैं।
क्या है स्लो सैंड फिल्टर
स्लो सैंड फिल्टर के निर्माण में रेत, छोटे पत्थर व बड़े पत्थर के तीन लेयर बनाए जाते हैं। ये ऊँचाई में लगभग छह फिट, चौड़ाई में चार फिट और आकार में गोल होते हैं। पानी जब इस फिल्टर के तीनों लेयर से होकर निकलता है तो एकदम शुद्ध हो जाता है। इस विधि को नेशनल एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी प्रमाणित किया है। ऐसा भी कह सकते हैं कि स्वच्छ पानी को प्रभावी ढंग से उपलब्ध कराने के लिये वर्तमान समय में यह एक नवाचार है। इस फिल्टर से 6 लीटर प्रति मिनट की दर से पीने योग्य पानी निकलता है जिसकी पाइपलाइन के माध्यम से आपूर्ति की जा सकती है।
Explanation:
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