what are bhed of sandhi
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संधि – संधि के प्रकार – संधि की परिभाषा, संधि-विच्छेद, संधि के प्रकार (Sandhi ke Prakar) – स्वर संधि (Swar Sandhi), व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi), विसर्ग संधि (Visarga Sandhi)
संधि की परिभाषा
संधि (Sandhi) – का अर्थ होता है- मेल
संधि की परिभाषा – दो वर्णों के मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।
जैसे-
भाव + अर्थ= भावार्थ
देव + आलय = देवाल
संधि-विच्छेद
विच्छेद का अर्थ है- ” अलग करना”
– संधि के द्वारा बने शब्दों को अलग-अलग करना संधि-विच्छेद कहलाता है।
जैसे-
हिमालय = हिम + आलय
दशानन = दश + आनन
संधि के प्रकार (Sandhi ke Prakar)
स्वर संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि
स्वर संधि (Swar Sandhi)
दो स्वरों के मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।
जैसे-
गज+ आनन
अ+ आ= आ
अर्थात् गज + आनन = गजानन
पर + उपकार
अ + उ = ओ
अर्थात् पर + उपकार = परोपकार
स्वर संधि के प्रकार (Swar Sandhi ke prakar)
दीर्घ संधि
गुण संधि
वृद्धि संधि
यण संधि
अयादि संधि
दीर्घ संधि
जब अ/ आ के बाद अ/ आ आने पर “आ” हो जाए तथा इ/ ई के इ/ई आने पर “ई” हो जाए तथा उ / ऊ के बाद उ /ऊ आने पर “ऊ” हो जाए तो वहां दीर्घ संधि होती है।
आ + अ = आ
अ + अ = आ
अ + आ = आ
आ + आ = आ
इ + इ = ई
इ + ई = ई
ई + ई = ई
ई + इ = ई
उ + उ = ऊ
उ + ऊ = ऊ
ऊ + उ = ऊ
ऊ + ऊ = ऊ
जैसे-
गिरीश
गिरि + ईश
इ + ई = ई
अर्थात् गिरि + ईश = गिरीश
– सूक्ति = सु + उक्ति
उ + उ = ऊ
अर्थात् सु + उक्ति = सूक्ति
गुण संधि
जब अ /आ के बाद इ/ ई आने पर ” ए” हो जाए तथा अ/ आ के बाद उ/ ऊ आने पर ” ओ” हो जाए तथा अ/ आ के बाद “ऋ” आने पर “अर” हो जाए तो वहां गुण संधि होती है।
अर्थात्
अ + इ/ई =ए
आ + इ/ई= ए
अ + उ/ऊ=ओ
आ+उ/ ऊ= ओ
अ + ऋ = अर्
आ +ऋ= अर्
जैसे –
महेश = महा + ईश
आ + ई= ए
अर्थात् महा + ईश = महेश
देवर्षि = देव + ऋषि
अ + ऋ = अर्
= देव + ऋषि = देवर्षि
वृद्धि संधि
जब अ/आ के बाद ए/ऐ आने पर “ऐ” हो जाए तथा अ / आ के बाद ओ / औ आने पर “औ” हो जाए तो वृद्धि संधि होती है।
अर्थात्
अ+ ए/ऐ = ऐ
आ+ ए/ऐ=ऐ
अ+ओ/औ=औ
आ+ओ/औ=औ
जैसे= परमौषध
परम + औषध
अ + औ = औ
अर्थात्= परम + औषध = परमौषध
महैश्वर्य = महा + ऐश्वर्य
आ + ऐ = ऐ
महा+ ऐश्वर्य =महैश्वर्य
यण संधि –
इ/ई के बाद तथा उ/ऊ के बाद कोई अन्य स्वर आए तो इ/ ई के स्थान पर “य्” तथा उ/ऊ के स्थान पर “व” हो जाता है “ऋ” के बाद कोई अन्य स्वर आए तो “ऋ” के स्थान पर “र” हो जाता है।
इ या ई उ या ऊ ऋ
‘य्’ ‘व्’ ‘र्’
जैसे -अत्यधिक= अति+ अधिक
इ + अ = य
अर्थात् = अति+ अधिक= अत्यधिक
स्वागत= सु + आगत
उ + आ = ‘वा’
अर्थात्= स्वा + गत= स्वागत
अयादि संधि –
जब, ए,ऐ,ओ,औ के बाद कोई अन्य स्वर आए तो ‘ए’ का’अय् ‘ऐ’ का ‘आय्’ ‘ओ’ का ‘अव्’ तथा ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाए तो वह अयादि संधि कहलाती है।
ए – अय्
ऐ – आय्
ओ – अव्
औ – आव्
जैसे – गायक= गै + अक
ऐ + अ = आय्
अर्थात् = गाय + अक = गायक
पावन = पौ + अन
औ + अ = आव्
अर्थात् = पाव् + अन = पावन
व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi)
व्यंजन के बाद स्वर अथवा व्यंजन के आने पर दोनों के मेल से जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
जैसे- जगदीश = जगत + ईश
त + ई = द
अर्थात्= जगद् + ईश = जगदीश
– वर्ग के पहले वर्ण का उसी वर्ग के तीसरे वर्ण में परिवर्तन –
– अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् के बाद कोई स्वर आ जाए या किसी वर्ग तीसरा/ चौथा वर्ण (ग्,घ्,ज्, झ्, ड्, ढ्, द्, ध्, ब्, भ्,) आ जाए या य,र,ल,व,ह आ जाए तो पहले वर्ण के स्थान पर तीसरा वर्ण हो जाता है।
अर्थात्- क् का ग्, च् का ज् ट् का ड्, त का द्, तथा प् का ब् हो जाता है।
जैसे –
वागीश = वाक् + ईश
क् + ई
अर्थात= वाग् + ईश = वागीश
षड्दर्शन = षट् + दर्शन
ट् + द = ड्
अर्थात्= षड् + दर्शन = षड्दर्शन
Answer:
SANDHI IS A COVER A TERM FOR A WIDE VARIETY OF SOUND CHANGE THAT OCCUR AT MORPHEME OR WORD BOUNDARIES.