Hindi, asked by shristimangar55, 3 months ago

what do you understand by the lesson behata pani nirmala​

Answers

Answered by luckytantway0101
2

Answer:

sorry maine ye chapter naii pada toh naii pata. sorry so sorry

please brainlist me please.

Answered by khushigarg42
3

लेखक को बचपन से नक्शे देखने की शौक है। नक्शों के सहारे वे दर-दनिया की सैर का मजा लेते हैं। लेखक कहते हैं कि यात्रा करने के कई तरीके हैं। एक तो यह कि आप सोच-विचार कर निश्चय कर लें कि कहाँ जाना है, कब जाना है, कहाँ-कहाँ घूमना है, कितना खर्च होगा, फिर उसी के अनुसार सारी तैयारी कीजिए। दूसरा तरीका यह है कि आप योजना तो बनाइए कहीं जाने की और निकल कहीं और पड़िए। अंग्रेजी की एक कहावत के अनुसार एक कील के कारण कभी-कभी पूरे राज्य से हाथ धोना पड़ता है। ऐसा ही कुछ लेखक के साथ हुआ-एक दाँत माँजने के ब्रुश और मोटर की एक मामूली-सी. ढिबरी के लिए एक बार वे बड़ी मुसीबत में पड़ गए। बरसात के दिन थे, रास्ता खराब था। एक दिन लेखक सबेरे घूमने निकले तो देखा कि नदी बढ़ कर सड़क के बराबर आ गयी है। वह सोनारी गाँव के डाकबँगले से दूर आ गए थे और शिवसागर से तीन-चार मील पर थे। टूथब्रश और मोटर की एक छोटी सी ढिबरी के चक्कर में उन्हें दो-तीन घंटे लग गए और जब वे वापस लौटे तो देखा कि सड़क पर पानी बड़े जोर से एक तरफ से दूसरी तरफ बह रहा था, क्योंकि सड़क के एक तरफ नदी थी, दूसरी तरफ नीची सतह के धान के खेत थे, जिनकी ओर पानी बढ़ रहा था। पानी के धक्के से सड़क कई जगह टूट गयी थी। लेखक पानी होने की वजह से पीछे भी नहीं लौट सकते थे, इसलिए आगे बढ़ता गए। पर थोड़ी देर बाद पानी कुछ और गहरा हो गया।

आगे कहीं कुछ दीखता नहीं था। सड़क के दोनों ओर लगे पेड़ों पर साँप लटक रहे थे। लेखक ने लौटने का निश्चय किया, पर सड़क दिखाई नहीं दे रही थी, अन्दाज से ही वे बीच के पक्के हिस्से पर गाड़ी चला रहे थे। लेखक किसी प्रकार शिवसागर पहुँचे। शिवसागर से सोनारी को एक दूसरी सड़क भी जाती थी चाय बागानों में से होकर, यह सड़क अच्छी थी पर इसके बीच एक नदी पड़ती थी जिसे नाव से पार करना होता था। लेखक ने इसी रास्ते से सोनारी जाने की सोची। लेखक इसे सड़क से नदी तक पहुँचे। नदी में नाव पर गाड़ी लाद भी ली और पार चले गए। किंतु यहाँ भी नदी में भीषण बाढ़ आयी थी। उस पार नदी का कगारा ऊँचा था, मोटर के लिए उतारी बना हुआ था। लेकिन नाव से किनारे तक जो तख्ते डाले गये थे वह ठीक नहीं लगे थे। लेखक की गाड़ी नीचे गिरी आधी पानी में, आधी किनारे पर। लेखक जोर से ब्रेक दबाये बैठे थे। आधे घण्टे तक उस स्वर्गनसैनी पर बैठे रहने के बाद जैसे-तैसे मोटर ऊपर चढ़ायी जा सकी। आगे ऊँची जगह पर एक गाँव था। यहीं सोनारी से आये दो साइकिल-सवारों से मालूम हुआ कि वे कन्धों तक पानी में से निकल कर आये हैं-साइकिलें कन्धों पर उठाकर! और मोटर तो कदापि नहीं जा सकती। इस तरह इधर भी निराशा थी। पानी अभी बढ़ रहा था पर लेखक यहाँ कैद हो जाना नहीं चाहते थे, इसलिए फिर नाव पर मोटर चढ़ा कर उसी रास्ते नदी पार की और रात को किसी तरह शिवसागर पहुँचे। एक सज्जन ने ठहरने को जगह दी, भोजन-बिस्तर का प्रबन्ध भी हो गया पर मन ही मन लेखक ने खुद को कोसा कि न नया दाँत-ब्रुश लेने के लिए सोनारी से निकले होते, न यह मुसीबत होती। लेखक को यहाँ बारह दिन काटना पड़ा और जब डाक बँगले पर वापस पहुँचे तो देखा कि वहाँ पानी भरा हुआ था। सब कुछ भीगकर बरबाद हो गया था। यात्रा में इस तरह की कठिनाइयाँ झेलने पर भी लेखक का मानना है कि घूमते-फिरते रहना चाहिए एक जगह टिकना तो मौत है।

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