What does Vivekanand say about jealousy?
विवेकानन्द ईष्र्या के बारे में क्या कहते हैं?
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Jealousy is the bane of our national character. It is natural to slaves.
ईर्ष्या हमारे राष्ट्र चरित्र पर एक शाप है। दासों में स्वाभाविक रूप से यह होती है।
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