what is marine sourcein detail in hindi
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समुद्री जीवन, या समुद्री जीवन या महासागर जीवन, पौधे, जानवर और अन्य जीव हैं जो समुद्र या समुद्र के खारे पानी में रहते हैं, या तटीय मुहल्लों के खारे पानी में रहते हैं। एक मौलिक स्तर पर, समुद्री जीवन ग्रह की प्रकृति को प्रभावित करता है। समुद्री जीव ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। समुद्री भाग आंशिक रूप से समुद्री जीवन द्वारा संरक्षित और संरक्षित होते हैं, और कुछ समुद्री जीव नई भूमि बनाने में भी मदद करते हैं।
अधिकांश जीवन रूप शुरू में समुद्री आवासों में विकसित हुए। आयतन के अनुसार, महासागर ग्रह पर लगभग 90 प्रतिशत जीवित स्थान प्रदान करते हैं। [1] सबसे पहले कशेरुक मछलियों के रूप में दिखाई दिए, जो विशेष रूप से पानी में रहते हैं। [२] इनमें से कुछ उभयचरों में विकसित हुए जो अपने जीवन के कुछ हिस्सों को पानी में और कुछ हिस्सों में जमीन पर बिताते हैं। अन्य मछलियाँ भूमि के स्तनधारियों में विकसित हुईं और बाद में सील, डॉल्फ़िन या व्हेल के रूप में समुद्र में लौट आईं। केलप और शैवाल जैसे पौधे पानी में बढ़ते हैं और कुछ पानी के नीचे के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आधार हैं। प्लैंकटन, और विशेष रूप से फाइटोप्लांकटन, मुख्य प्राथमिक उत्पादक हैं जो महासागर खाद्य श्रृंखला की सामान्य नींव बनाते हैं।
समुद्री अकशेरुकी सांस की नलियों (कीट और मोलस्क साइफन) और गलफड़े सहित खराब ऑक्सीजन वाले पानी में जीवित रहने के लिए संशोधनों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित करते हैं। मछली में फेफड़ों के बजाय गलफड़े होते हैं, हालांकि मछली की कुछ प्रजातियां, जैसे कि लंगफिश, दोनों हैं। डॉल्फिन, व्हेल, ऊदबिलाव, और जवानों जैसे समुद्री स्तनधारियों को हवा में सांस लेने के लिए समय-समय पर सतह की आवश्यकता होती है।
कुल 230,000 प्रलेखित समुद्री प्रजातियाँ मौजूद हैं, जिनमें समुद्री मछलियों की लगभग 20,000 प्रजातियाँ शामिल हैं, जिनमें कुछ दो मिलियन समुद्री प्रजातियाँ अभी भी प्रलेखित हैं। [3] समुद्री प्रजातियां सूक्ष्म से आकार में होती हैं, जिसमें प्लेंक्टन और फाइटोप्लांकटन शामिल हैं, जो 0.02 माइक्रोमीटर तक छोटे हो सकते हैं, विशाल सेकेटियन (व्हेल, डॉल्फ़िन और पर्पोइज़) तक, ब्लू व्हेल सहित - सबसे बड़ा ज्ञात जानवर जो 33 मीटर (108 फीट) तक पहुंचता है। ) लंबाई में। [४] [५] बैक्टीरिया और वायरस सहित समुद्री सूक्ष्मजीव, कुल समुद्री बायोमास का लगभग 70% हिस्सा हैं।
Explanation:
कई वर्षों के लिए, पारंपरिक पश्चिमी औषध विज्ञान ने स्थलीय वातावरण में चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण पौधों और जानवरों की जांच और पहचान पर ध्यान केंद्रित किया, हालांकि पारंपरिक चीनी चिकित्सा में कई समुद्री जीवों का उपयोग किया गया था। 1940 के दशक में ओपन-सर्किट स्व-निहित पानी के नीचे साँस लेने के उपकरण या SCUBA के विकास के साथ, कुछ रसायनज्ञ समुद्री वातावरण में नई दवाओं की तलाश में अधिक अग्रणी काम करने लगे। संयुक्त राज्य में, सड़क सीधे समुद्र से एक दवा के पहले एफडीए अनुमोदन के लिए लंबे समय से है, लेकिन 2004 में, एक समुद्री शंकु घोंघा से पृथक ज़िकोनोटाइड की मंजूरी ने नैदानिक से आगे बढ़ने वाले अन्य समुद्री व्युत्पन्न यौगिकों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। परीक्षणों।
पृथ्वी की 79% सतह को पानी से ढकने के साथ, समुद्री जीवों के रसायन विज्ञान में अनुसंधान अपेक्षाकृत अस्पष्ट है और कैंसर, एड्स या मलेरिया जैसी बड़ी बीमारियों का मुकाबला करने के लिए नई दवाओं के लिए एक विशाल संसाधन का प्रतिनिधित्व करता है। अनुसंधान आम तौर पर रासायनिक जीवों की उनकी अंतर्निहित आवश्यकता के कारण निर्जीव जीवों या धीमी गति से बढ़ने वाले जानवरों पर केंद्रित है। मानक अनुसंधान में एक उपयुक्त विलायक में जीव का निष्कर्षण शामिल होता है, जिसके बाद किसी विशेष रोग लक्ष्य या कच्चे क्रोमैटोग्राफी तकनीक का उपयोग करके नए रासायनिक यौगिकों के तर्कसंगत निर्देशित अलगाव के लिए इस कच्चे अर्क का एक परख होता है। परिभाषा: - मरीन फार्माकोग्नॉसी फार्माकोग्नॉसी की एक उप शाखा है जो मुख्य रूप से समुद्री से औषधीय मूल्य के प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थों से संबंधित है। औषधियां बैक्टीरिया, वायरस, शैवाल, कवक और स्पंज, आदि की समुद्री प्रजातियों से प्राप्त की जाती हैं।
पृथ्वी का तीन चौथाई भू-भाग महासागरों से घिरा है। भारत स्वयं एक प्रायद्वीप है, जो तीन ओर से समुद्रों से घिरा है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब महासागर और दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। विश्व में इनके अतिरिक्त 5 प्रमुख महासागर हैं।
भौगोलिक दृष्टि एवं जलवायु की दृष्टि से महासागरों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके साथ ही आर्थिक दृष्टि से भी महासागरों का काफी महत्त्व है। समुद्रों के माध्यम से यात्री एवं माल परिवहन बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार की सामुद्रिक मछलियाँ, जीव, सीप, मोती एवं अनेक बेशकीमती वनस्पतियाँ समुद्र से प्राप्त की जाती हैं। समुद्र में पेट्रोलियम पदार्थों का भी अथाह भण्डार है। कहना न होगा कि समुद्र अर्थ-व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण आधार-स्तम्भ है। सामाजिक दृष्टि से भी समुद्रों का अत्यधिक महत्त्व है। वर्तमान में राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा की दृष्टि से भी समुद्री सीमाएँ चर्चा में हैं।
समुद्री प्रदूषण के कारण, प्रभाव एवं इस पर नियंत्रण लगाने के उपाय
इसमें सन्देह नहीं कि नदियाँ समुद्र में मिलने के साथ ही अपने साथ बहाकर लाई गई प्रत्येक वस्तु को भी समुद्र में समाहित कर देती हैं। अर्थात नदी के साथ बहकर आया घरेलू एवं औद्योगिक दूषित जल, कीटनाशक, उर्वरक, भारी धातु, नगरीय एवं औद्योगिक ठोस अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट, नाभिकीय कचरा, पॉलीथीन आदि सभी अन्ततः समुद्र में मिल जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 30-35 मिलियन किलोग्राम प्लास्टिक पैकिंग सामग्री और बैग्स सीधे ही समुद्र में डम्प किये जाते हैं। जबकि लगभग 200 मिलियन किलोग्राम प्लास्टिक कचरा विभिन्न नदियों के माध्यम से महासागरों में पहुँचता है।
तेल रिसाव से होने वाला समुद्री प्रदूषण
समुद्रों का दूसरा प्रमुख प्रदूषक तेल है। तेल का अधिकांश परिवहन समुद्रों के माध्यम से होता है। इनके दुर्घटनाग्रस्त होने या इनके रिसाव से बड़ी मात्रा में तेल समुद्र में बिखर जाता है। लगभग 300 मिलियन गैलन तेल का प्रतिवर्ष समुद्र में रिसाव होता है।
समुद्र में सीधे ही अथवा नदियों के माध्यम से मिलने वाले अपशिष्ट का 80 प्रतिशत, ड्रेजिंग द्वारा 10 प्रतिशत, औद्योगिक अपशिष्ट एवं सीवेज स्लज 9 प्रतिशत होता है।
दुनियाभर में तेल का अधिकांश परिवहन समुद्रों से होता है। तेल परिवहन में उपयोग में आने वाले टैंकर एवं सुपर टैंकर से बड़ी मात्रा में तेल परिवहन के दौरान रिसाव होता है। इसके साथ ही समुद्र तट पर पेट्रोलियम तेल के उत्खनन के दौरान भी तेल की बड़ी मात्रा समुद्र में मिल जाती है। अनुमानतः 10 लाख टन तेल के समुद्री परिवहन के दौरान लगभग एक टन तेल का रिसाव होता है। इसके अतिरिक्त समुद्री तूफानों के आने से भी बड़ी मात्रा में परिवहन किया जा रहा तेल समुद्र जल में जा मिलता है।
समुद्री जल में जहाजों से रिसाव या अन्य किसी कारणवश तेल के मिलने की समस्या एक गम्भीर पर्यावरणीय समस्या है। क्योंकि एक बार समुद्र जल में तेल के मिल जाने के बाद इसे पृथक करना लगभग असम्भव है। तेल का सर्फेस टेंशन कम होने से वो तुरन्त पानी की सतह पर फैल जाता है। पानी की सतह पर इसकी पतली फिल्म बन जाती है।
एमोको कैडिज टैंकर में फ्रेंच कोस्ट के पास हुए रिसाव से 1978 में लगभग 1.6 मिलियन बैरल कच्चा तेल, मेक्सिको की खाड़ी में स्थित इक्सटॉक आई तेल के कुएँ से 1979 में 3.3 मिलियन बैरल तेल तथा जनवरी 1993 में शेटलैंड आईलैंड के तट पर समुद्री तूफान से लगभग 6,80,000 बैरल तेल का रिसाव समुद्रों में हो चुका है। इसी तरह की अनेक घटनाएँ समय-समय पर समुद्रों में घटती रहती हैं जिसके कारण बड़ी मात्रा में तेल का रिसाव होता है।
समुद्री प्रदूषण के प्रभाव
1. समुद्री जल में घुलित ऑक्सीजन की कमी :-
समुद्री जल में प्रदूषकों विशेषकर कार्बनिक प्रदूषकों की मात्रा बढ़ने के साथ ही जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में कमी होती है। इसका कारण यही है कि जल में उपस्थित सूक्ष्म जीव एवं बैक्टीरिया द्वारा प्रदूषक के रूप में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों का भक्षण करने के साथ ही उनकी संख्या में वृद्धि होने के फलस्वरूप घुलित ऑक्सीजन की खपत भी बढ़ती है और जल में घुलित ऑक्सीजन उसी तीव्रता से कम होती है। वास्तव में समुद्री जल में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ने से स्वाभाविक रूप से उसकी बीओडी बढ़ जाती है तथा बी.ओ.डी. बढ़ने से जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।
2. समुद्री जीवों पर प्रभाव :-
समुद्री जल में तेल के रिसाव से समुद्री जल सतह पर तेल की पतली फिल्म बन जाती है, जिससे वातावरण की वायु जल सतह के सीधे सम्पर्क में नहीं आ पाती, जिससे जल में घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त रिसे हुए तेल को हटाने के लिये उपयोग किए जाने वाले डिटर्जेंट भी समुद्र की जलीय जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। ये रासायनिक डिटर्जेंट अत्यंत विषैले किस्म के होते हैं। इनके जलीय जीवों द्वारा ग्रहण किए जाने से ये रसायन खाद्य श्रृंखला में आ जाते हैं। साथ ही ये समुद्री सेडीमेंट में भी जमा हो जाते हैं। समुद्री जीवों की अनेक प्रजातियाँ इस प्रकार डिटर्जेंट का शिकार बन समाप्त होती जा रही हैं। डिटर्जेंट को खाने वाले समुद्री जीवों को ग्रहण करने पर मनुष्य के शरीर में भी ये हानिकारक रसायन पहुँच जाते हैं।