what is population ?disadvantage in Hindi one and page paragraph
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भारत में जनसंख्या- वृद्धि का सामान्य क्रम यह है कि हर पीढ़ी में वह दुगुनी होती रहती है । इस क्रम में सन् १९३०-३२ में भारत की आबादी ६० करोड़ थी, आज यह १ अरब से अधिक हो गई है ।
आज का समाज भौतिक क्षेत्र में विकास कर रहा है । जीवन-क्रम द्रुतगति से बदलता जा रहा है । प्राकृतिक साधनों का भी अधिकाधिक उपयोग हो रहा है, फिर भी जनसंख्या का संतुलन और उस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है । अर्थशास्त्र के नियमानुसार, जीवन-स्तर के निम्न होने पर जनसंख्या बढ़ती है । भारत शायद इसी दरिद्रता का शिकार बना हुआ है ।
जनसंख्या की वृद्धि की समस्या अन्य अनेक समस्याओं को पैदा करती है । प्रतिवर्ष उत्पादित खाद्यान्न अपर्याप्त हो जाता है और जो है, वह महँगा हो जाता है । इसी हिसाब से अन्य उपयोगी वस्तुओं के दाम भी बढ़ते हैं । सरकार के पास काम की कमी हो जाती है, अत: बेकारी भी बढ़ती जाती है ।
वैज्ञानिक प्रगति के कारण पूँजीवादी अथवा साम्राज्यवादी आधिपत्य मानव-श्रम को दिन-प्रतिदिन उपेक्षित करता जा रहा है । ऐसी स्थिति में जनसंख्या की स्थिरता आज की अनिवार्य माँग बन गई है । इसके लिए पाश्चात्य देशों में परिवार-नियोजन के अनेक तरीके अपनाए जाते हैं:
संतति नियंत्रण के साधनों में नसबंदी और नलबंदी भी शामिल है । भारत में भी इन साधनों का प्रचार होने लगा है । विवाह की उम्र बढ़ाने की प्रेरणा दी जाती है । भारत में संतानात्पप्न को ईश्वर की देन माना जाता है ।
इसका किसी भी रूप में निरोध ईश्वर के कर्मों में दखल माना जाता है । लेकिन अब स्थिति बदल रही है । शिक्षा के विकास के साथ भारतीय दंपती इम अच्छी तरह समझ रहे हैं और परिवार-नियोजन को अपना रहे हैं । माता के आरोग्य तथा सौंदर्य की रक्षा के लिए भी परिवार-नियोजन पर जोर दिया जाता है ।
आज यद्यपि जनसंख्या-वृद्धि देश की उन्नति में बाधक बनी हुई है तथापि इसके दूसरे पहलू पर विचार किया जा सकता है । जनसंख्या अथवा मानव-शक्ति किसी भी राष्ट्र की निधि मानी जाती है । जन-बल से सरकार अपनी निर्माण-योजनाएँ पूरी कर सकती है ।
आज का समाज भौतिक क्षेत्र में विकास कर रहा है । जीवन-क्रम द्रुतगति से बदलता जा रहा है । प्राकृतिक साधनों का भी अधिकाधिक उपयोग हो रहा है, फिर भी जनसंख्या का संतुलन और उस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है । अर्थशास्त्र के नियमानुसार, जीवन-स्तर के निम्न होने पर जनसंख्या बढ़ती है । भारत शायद इसी दरिद्रता का शिकार बना हुआ है ।
जनसंख्या की वृद्धि की समस्या अन्य अनेक समस्याओं को पैदा करती है । प्रतिवर्ष उत्पादित खाद्यान्न अपर्याप्त हो जाता है और जो है, वह महँगा हो जाता है । इसी हिसाब से अन्य उपयोगी वस्तुओं के दाम भी बढ़ते हैं । सरकार के पास काम की कमी हो जाती है, अत: बेकारी भी बढ़ती जाती है ।
वैज्ञानिक प्रगति के कारण पूँजीवादी अथवा साम्राज्यवादी आधिपत्य मानव-श्रम को दिन-प्रतिदिन उपेक्षित करता जा रहा है । ऐसी स्थिति में जनसंख्या की स्थिरता आज की अनिवार्य माँग बन गई है । इसके लिए पाश्चात्य देशों में परिवार-नियोजन के अनेक तरीके अपनाए जाते हैं:
संतति नियंत्रण के साधनों में नसबंदी और नलबंदी भी शामिल है । भारत में भी इन साधनों का प्रचार होने लगा है । विवाह की उम्र बढ़ाने की प्रेरणा दी जाती है । भारत में संतानात्पप्न को ईश्वर की देन माना जाता है ।
इसका किसी भी रूप में निरोध ईश्वर के कर्मों में दखल माना जाता है । लेकिन अब स्थिति बदल रही है । शिक्षा के विकास के साथ भारतीय दंपती इम अच्छी तरह समझ रहे हैं और परिवार-नियोजन को अपना रहे हैं । माता के आरोग्य तथा सौंदर्य की रक्षा के लिए भी परिवार-नियोजन पर जोर दिया जाता है ।
आज यद्यपि जनसंख्या-वृद्धि देश की उन्नति में बाधक बनी हुई है तथापि इसके दूसरे पहलू पर विचार किया जा सकता है । जनसंख्या अथवा मानव-शक्ति किसी भी राष्ट्र की निधि मानी जाती है । जन-बल से सरकार अपनी निर्माण-योजनाएँ पूरी कर सकती है ।
palakrajputjaggi1:
hlo
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