Environmental Sciences, asked by hitboy, 9 months ago

what is the harit kranti explain and full example​

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Answered by iamrita
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Answer:

Explanation:

अधिक उपज देने वाले उन्नत किस्म के बीजों, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग, सिंचाई के लिए पानी और बिजली की व्यवस्था, कीटनाशक दवाइयों आदि के विशाल कार्यक्रम को हरित क्रांति कहा जा सकता है । इसमें कृषि वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा है ।

उन्होंने ऐसे सकर बीजों की खोज की, जिनसे पहले की तुलना में कई गुना उपज हो सकती है । अनेक प्रकार के रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशक दवाइयों तथा पौधों के रोगों के इलाज के अनुसधान ने भी इस दिशा में बड़ा योगदान दिया है ।

इससे हमारे देश में गेहूं के प्रति एकड उपज में बड़ी वृद्धि हुई है । लेकिन चावल के उत्पादन पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पडा । इसलिए सच पूछो तो इसे गेहूं क्रान्ति कहा जाना चाहिए । हमारे देश की अधिकांश जनता का मुख्य भोजन चावल है । खाद्यान्नो की खेती के कुल क्षेत्र के लगभग 275 भाग पर ही गेहूं की खेती की जाती है । हम अब तक भारत की जलवायु में अधिक उपज देने वाले उन्नत किस्म के चावल के बीजों की खोज नहीं हो पाई है ।

खेती में काम आने वाले औजारों और यन्त्री के प्रयोग ने भी हरित क्रान्ति में बड़ी मदद की है । समग्र रूप में इस क्रान्ति के फलस्वरूप देश में गेहूं के उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है । रासायनिक उर्वरकों और उन्नत किस्म के बीजों से प्रति एकड़ उपज भी बहुत बढ़ी है ।

हरित क्रान्ति ने खेती को एक व्यवसाय का रूप दे दिया है । अत: खेती करने में बडी पूँजी की आवश्यकता पड़ने लगी है । भारत के अधिकांश किसान गरीब हैं । उनकी कृषि जोत भी बहुत कम है । अत: इस क्रान्ति का असली लाभ केवल समृद्ध किसान ही उठा पाये है ।

हरित क्रान्ति की कमियों:

प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिकों ने अपनी भूमिका तो सही ढंग से निभा कर इस क्रान्ति को कारगर बना दिया, लेकिन खेतों तक पहुंचने में हम विशेष सफल नहीं हो सके । इसके अनेक कारण हैं । सबसे पहली कमी रही है कि हरित क्रांति के लिये आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और वितरण में सही ताल-मेल नहीं बैठाया जा सका है ।

 

किसानों को ठीक समय पर ये सभी पदार्थ एक साथ नहीं मिल पाते । समय पर इन पदार्थो के न मिल पाने से लागत तो बढ़ जाती हे, पर उपज उतनी नहीं हो पाती । इसे देखकर किसानों में निराशा फैल जाती है । दूसरी कमी सिचाई साधनों और बिजली की रही है । उन्नत किस्म के बीज और रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बाद यदि ठीक समय पर उन्हें पानी न मिले तो पौधे जल जाते हैं और उपज बहुत कम हो जाती है ।

इन्हें परम्परागत ढंग से खेती की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है । बिजली की कमी से नलकूपों से भी समय पर पानी नहीं मिल पाता । तीसरी बड़ी समस्या धन की है । इस खेती में पर्याप्त लागत आती है । धन की कमी के कारण अधिकांश किसान समय पर सभी वस्तुयें नहीं जुटा पाते । किसानों की अशिक्षा भी एक बड़ा कारण है, जिससे हरित क्रान्ति का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सका है ।

क्रान्ति को कारगर बनाने में सरकार के प्रयत्न:

सरकार हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए सतत् प्रयत्नशील है । राष्ट्रीयकृत बैंकों तथा सहकारी बैंकों के द्वारा किसानों को कम ब्याज पर कर्ज की व्यवस्था की गई है । कृषि के काम आने वाली सभी वस्तुओं को रियायती कीमतों पर किसानों को एक साथ उपलक कराने की व्यवस्था की गई है । किसानों के बीच व्यापक प्रचार के द्वारा उन्हें इन उपायों के अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ।

नलकूपों के निर्माण मे सरकार एक बड़ी धन-राशि अनुदान के रूप में और शेष कर्ज के रूप में देती है । देश में बिजली का सकट होते हुए- भी सिचाई के समय निश्चित घटों तक प्राथमिक के आधार पर तथा सस्ती दरों पर उन्हें बिजली दी जाती है । मशीनों यन्त्रों और औजारों की खरीद पर कर्ज और अनुदान की व्यवस्था की गई है । इतने पर भी अभी तक हमें पूरी सफलता नहीं मिल पाई है ।

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