What is upasarg and pratya???
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उपसर्ग
जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पहले जुड़कर उसके अर्थ मेँ परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैँ , उन शब्दांशोँ को उपसर्ग कहते हैँ। जैसे –‘हार’ एक शब्द है। इस शब्द के पहले यदि ‘प्र’ , उपसर्ग जोड़ दें तो प्र+हार = प्रहार तथा उपसर्गोँ का अर्थ कहीं – कहीं नहीं भी निकलता है। जैसे – ‘आरम्भ’ का अर्थ है – शुरुआत। इसमेँ ‘प्र’ उपसर्ग जोड़ने पर नया शब्द ‘प्रारम्भ’ बनता है जिसका अर्थ भी ‘शुरुआत’ ही निकलता है।
1. प्र + बल = प्रबल
2.अनु + शासन = अनुशासन
3.अ + सत्य = असत्य
4.अप + यश = अपयश
5.वि + शुद्ध = विशुद्ध
6.परि + भ्रमण = परिभ्रमण
7.अप + मान = अपमान
8.पाठ + शाला = पाठशाला
9.दुकान + दार = दुकानदार
10.अनु + क्रमांक = अनुक्रमांक
कुछ शब्दों के पूर्व एक से अधिक उपसर्ग भी लग सकते हैं।
• प्रति + अप + वाद = प्रत्यपवाद
• सम् + आ + लोचन = समालोचन
• वि + आ + करण = व्याकरण
प्रत्यय
प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर , अपनी प्रकृति के अनुसा र, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में , पर बाद में " और अय का अर्थ होता है "चलने वाला", अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला। जिन शब्दों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता वे किसी शब्द के पीछे लगकर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।
प्रत्यय का अपना अर्थ नहीं होता और न ही इनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है । प्रत्यय अविकारी शब्दांश होते हैं जो शब्दों के बाद में जोड़े जाते है । कभी कभी प्रत्यय लगाने से अर्थ में कोई बदलाव नहीं होता है । प्रत्यय लगने पर शब्द में संधि नहीं होती बल्कि अंतिम वर्ण में मिलने वाले प्रत्यय में स्वर की मात्रा लग जाएगी लेकिन व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है।
1.समाज + इक = सामाजिक
2.सुगंध +इत = सुगंधित
3.भूलना +अक्कड = भुलक्कड
4.मीठा +आस = मिठास
5.धन + वान = धनवान
6.विद्या + वान = विद्वान
7.उदार + ता = उदारता
8.पण्डित + ई = पण्डिताई
9.चालाक + ई = चालाकी
10.सफल + ता = सफलता