History, asked by WinstoneX, 8 months ago

what was the story of kaal bhairav,, and please answer in Hindi ​

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Answered by shwetalapse1313
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Answer:

अगहन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरवअष्टमी कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन ही शिव जी के अंश काल भैरव का जन्म हुआ था। कालभैरव को भगवान शिव का दूसरा रुप कहा जाता है। भैरव अष्टमी के दिन व्रत उपवास, पूजा-पाठ का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार काल भैरव की पूजा से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता। आइए जानते हैं काल भैरव की जन्म कथा से जुड़ी कुछ रोचक बातें...

काल भैरव जन्म कथा

पुराणों में कालभैरव के जन्म को लेकर बहुत ही रेचक कथा बताई गई है। जिसके अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में इस बात पर बहस छिड़ गई के कौन सर्वश्रेष्ठ है। दोनों में इस बात को लेकर विवाद होने लगा। विवाद इतना बढ़ गया के दोनों आपस में युद्ध करने लगे की कौन श्रेष्ठ है। इसके बाद सभी देवताओं ने वेद से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है वही सबसे श्रेष्ठ है। अर्थात भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं। वेद के मुख से यह बात सुनकर ब्रह्माजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में बहुत भला-बुरा कहा। जिसे सुनकर वेद दुखी हो गए। उसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। तब ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है इसलिए तुम मेरी सेवा में आ जाओ।

ब्रह्माजी के इस आचरण पर शिवजी को भयानक क्रोध आ गया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को ही काट दिया। बाद में शिवजी के कहने पर भैरवजी काशी प्रस्थान किये जहां ब्रह्म हत्या से उन्हें मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्ति किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। कहा जाता है की विश्वनाथ के दर्शन काशी के कोतवाल के बिना अधूरे हैं।

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