Hindi, asked by marinetteCoccinelle, 11 months ago

who was devvrat? in hindi​

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Answered by ARMAN06
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इन्हें अपनी उस भीष्म प्रतिज्ञा के लिये भी सर्वाधिक जाना जाता है जिसके कारण इन्होंने राजा बन सकने के बावजूद आजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के संरक्षक की भूमिका निभाई। इन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया व ब्रह्मचारी रहे। इसी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए महाभारत में उन्होने कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया था। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान था। यह कौरवों के पहले प्रधान सेनापति थे। जो सर्वाधिक दस दिनो तक कौरवों के प्रधान सेनापति रहे थे। कहा जाता है कि द्रोपदी ने शरसय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह से पूछा की उनकी आंखों के सामने चीर हरण हो रहा था और वे चुप रहे तब भीष्म पितामह ने जवाब दिया कि उस समय मै कौरवों के नमक खाता था इस वजह से मुझे मेरी आँखों के सामने एक स्त्री के चीरहरण का कोई फर्क नही पड़ा,परंतु अब अर्जुन ने बानो की वर्षा करके मेरा कौरवों के नमक ग्रहण से बना रक्त निकाल दिया है, अतः अब मुझे अपने पापों का ज्ञान हो रहा है अतः मुझे क्षमा करें द्रोपदी। [1] महाभारत युद्ध खत्म होने पर इन्होंने गंगा किनारे इच्छा मृत्यु ली।

पूर्व जन्म में वसु थे भीष्म संपादित करें

भीष्म के नाम से प्रसिद्ध देवव्रत पूर्व जन्म में एक वसु थे | एक बार कुछ वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण करने गए | उस पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ जी का आश्रम थे | उस समय महर्षि वशिष्ठ जी आपने आश्रम में नहीं थे लेकिन वहां उनकी प्रिय गायें कामधेनु की बछड़ी नंदिनी गाये बंधी थी | उस गायें को देखकर द्यौ नाम के एक वसु की पत्नी उस गायें को लेने की जिद करने लगी | अपनी पत्नी की बात मानकर द्यौ वसु ने महर्षि वशिष्ठ जी के आश्रम से उस गायें को चुरा लिया | जब महर्षि वशिष्ठ जी वापिस आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से पूरी घटना को देख लिया |

महर्षि वशिष्ठ जी वसुओं के इस कार्य को देखकर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने वसुओं को श्राप दे दिया कि उन्हें मनुष्य रूप में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ेगा | इसके बाद सभी वसु वशिष्ठ जी से माफ़ी मांगने लगे | इस पर महर्षि वशिष्ठ जी ने बाकी वसुओं को माफ़ कर दिया और कहा की उन्हें जल्दी ही मनुष्य जन्म से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन द्यौ नाम के वसु को लम्बे समय संसार में रहना होगा और दुःख भोगने पड़ेंगे |

परशुराम के साथ युद्ध संपादित करें

भगवान परशुराम के शिष्य देवव्रत अपने समय के बहुत ही विद्वान व शक्तिशाली पुरुष थे। महाभारत के अनुसार हर तरह की शस्त्र विद्या के ज्ञानी और ब्रह्मचारी देवव्रत को किसी भी तरह के युद्ध में हरा पाना असंभव था। उन्हें संभवत: उनके गुरु परशुराम ही हरा सकते थे लेकिन इन दोनों के बीच हुआ युद्ध में परशुराम जी की हार हुआ और दो अति शक्तिशाली योद्धाओं के लड़ने से होने वाले नुकसान को आंकते हुए इसे भगवान शिव द्वारा रोक दिया गया।

Answered by expresso68
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Answer:

Devvrat is better known as Bhishm Pitama

वे भीष्म पितामा के नाम से ज़्यादा प्रसिद्ध थे ।

वे राजा शांतनु के पुत्र थे ।

उनका भीष्म इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा ली थी कि वे जीवन भर शादी नहीं करेंगे और ना ही राज्य सिंहासन पर विराजेंगे ।

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